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________________ 335 ध्यान के भेद - आगे, ध्यानशतक में लिखा है कि आर्त्त, रौद्र, धर्म तथा शुक्ल -ये ध्यान के चार प्रकार है। इनमें प्रथम के दो ध्यान संसारवर्द्धक तथा चरम दो ध्यान निर्वाण के हेतु हैं। 127 आदिपुराण में कहा गया है कि ध्यान प्रशस्त (शुभ) और अप्रशस्त (अशुभ) रूप से दो-दो प्रकार के हैं। आर्त और रौद्र-ध्यान अप्रशस्त तथा धर्म और शुक्ल-ध्यान प्रशस्त हैं। इस प्रकार ध्यान के चार भेद हैं। अप्रशस्त ध्यान भवभ्रमणा-रूप तथा प्रशस्तध्यान भव-भ्रमणा निवारण-रूप माना गया है।128 1. आर्तध्यान - ध्यानशतक में आर्त्तध्यान के चार प्रकारों के निरूपण के साथ-साथ उनके फल, लेश्या, लक्षण, लिंग, स्वामियों की चर्चा भी की गई है। 129 इसी प्रकार, आदिपुराण में भी प्रस्तुत ध्यान के काल, फल, आलंबन, लक्षण, भाव आदि की चर्चा की गई है।130 2. रौद्रध्यान - ध्यानशतक में आर्तध्यान के समान ही रौद्रध्यान के भी चार प्रकारों का निरूपण करते हुए उसके अधिकारी, फल, लेश्या, लिंगादि की चर्चा की गई है।131 आदिपुराण में जिनसेनाचार्य सर्वप्रथम रूद्र के स्वरूप को बताते हुए कहते हैं, “प्राणिनां रोदनाद् रूद्रः तत्र भवं रौद्रम्”। तत्पश्चात्, उसके हिंसानन्द, मृषानन्द, स्तेयानन्द और संरक्षणानन्द -इस प्रकार चार भेदों के नामनिर्देशन के साथ-साथ 127 धीबलायत्तवृत्तित्वाद् ध्यानं...उत्तरं द्वितयं ध्यानमुपादेयं तु योगिनाम् -आदिपुराण- 21/11-29 128 जं. थिरमज्झवसाणं ........बहुवत्थुसंकमे झाणसंताणो।। - ध्यानशतक, गाथा 2,3,4 129 अमणुण्णाणं सद्दाइविसयवत्थूण .....वज्जेयव्वं जइजणेणं। – ध्यानशतक, गाथा 6-18 19° ऋते भवभयार्त स्याद् ध्यानमा....साश्रुतान्यच्च तादृशम।।। – आदिपुराण, 21/31-41 131 सत्तवह-वेह-बंधण.....रोद्दज्झाणोवगयचित्तो।। -ध्यानशतक, गाथा 19-27 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003973
Book TitleJinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyashraddhanjanashreeji
PublisherPriyashraddhanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages495
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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