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________________ 324 किसी एक ही योगवाले साधक को, तीसरा शुक्लध्यानकाययोगी साधक को और चौथा शुक्लध्यान योग से रहित हुए अयोगी को होता है। तदुपरान्त, यह भी कहा गया है कि श्रुतकेवली के जो पहले के दो शुक्लध्यान होते हैं, उनमें प्रथम वितर्क व विचारसहित होता है और द्वितीय वितर्कसहित किन्तु विचाररहित होता है। आगे प्रसंगानुसार प्राप्त वितर्क का और विचार का लक्षण भी स्पष्ट प्रकट किया गया है। प्रसंगानुसार, शुक्लध्यान से सम्बन्धित उपर्युक्त सम्पूर्ण विषय-वस्तु ध्यानशतक के अन्तर्गत उपलब्ध है। इससे सम्बन्धित तत्त्वार्थसूत्र के सूत्र और ध्यानशतक की गाथाएँ इस प्रकार हैं - ' तत्त्वार्थसूत्र/अ.9/सू. 37-38, 40, 41-42 ध्यानशतक/गा. 64, 83, 77-80 ध्यानशतक और मूलाचार का तुलनात्मक अध्ययन - 'मूलाचार', जिसके रचयिता आचार्य वट्टकेर हैं, सम्भवतः उसका रचनाकाल प्रथम अथवा द्वितीय शताब्दी है। यह मुनिचर्या पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें मूलगुणाधिकार, बृहत्प्रत्याख्यान-संस्तरस्त्वाधिकार, संक्षेपप्रत्याख्यानाधिकार, समाचाराधिकार, पंचाचाराधिकार, पिण्डशुद्धि-अधिकार, षडावश्यक-अधिकार, द्वादशानुप्रेक्षाधिकार, अनगारभावनाधिकार, समयसाराधिकार, शीलगुणाधिकार और पर्याप्त्याधिकार -ये बारह अधिकार हैं। “मूलाचार पर अनेक टीकाएँ तो लिखी गईं, साथ ही इसको आधार बनाकर जिन ग्रन्थों की स्वतंत्र रचना हुई उनमें अनगारधर्मामृत, आचारसार, चारित्रसार, मूलाचारप्रदीप आदि ग्रन्थ प्रमुख हैं, जिन पर मूलाचार का स्पष्ट प्रभाव है। 83 इसके पंचाचार नामक पांचवें अधिकार में तप का वर्णन करते हुए तप के छह आभ्यन्तर भेदों का निर्देश किया गया है। उन छह 82 प्रस्तुत संदर्भ-ध्यानशतक, सन्मार्ग प्रकाशन, आ. कीर्तियशसूरि, पुस्तक से उदधृत है, यानी ध्यानशतक का तुलनात्मक अध्ययन के प्रसंग से लिया, पृ. 103 83 प्रस्तुत वाक्यांश मूलाचार – प.भारतवर्षीय अनेकान्त विद्वत परिषद, पुस्तक के सम्पादकीय से उद्धृत, पृ. 9 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003973
Book TitleJinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyashraddhanjanashreeji
PublisherPriyashraddhanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages495
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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