________________
301
सिद्धों के समान चिन्तन-मनन करना रूपातीत-ध्यान है। 188 सामान्यतया पिण्डस्थ, पदस्थ, रूपस्थ और रूपातीत-ध्यान के प्रकार धर्मध्यान में ही सम्मिलित हैं किन्तु ये भेद ध्येय की अपेक्षा से किए गए हैं, इसलिए इनका अलग से वर्णन किया गया है।
188 प्रस्तुत संदर्भ ‘चर्चासागर' चर्चा दौ सौ सैंतालीसवीं से उद्धृत, पृ. 534
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
-
www.jainelibrary.org