________________
237
जो आत्मा को 'स्व' में स्थिर बनाए, अर्थात् निजस्वरूप में अवस्थित करे, स्व-स्वरूप में आधा भूत बने, उसे ध्यान के क्षेत्र में आलम्बन कहते हैं। समवायांग/83. विशेषावश्यकभाष्य84 में कषाय के चार प्रकार बताए गए हैं, वे निम्नांकित हैं
1. क्रोध 2. मान 3. माया 4. लोभ । इन चार कषायों के क्षय होने पर चार गुण प्रकट होते हैं, वे इस प्रकार हैं
1. क्षमा 2. मार्दव 3. आर्जव 4. मुक्ति। मूलतः, शुक्लध्यान के उपर्युक्त जो चार आलम्बन हैं, वे कषायों के अभाव के हेतु हैं। जब साधक के जीवन में शान्ति समा जाती है, तब क्रोध का स्वतः ही पलायन हो जाता है,785 जो मार्दव, मान-कषाय के त्याग का सूचक है। 86 आर्जव –गुण आने पर माया-कषाय नष्ट हो जाती है87 और निर्लोभता से तो लोभ का अस्तित्व ही नहीं रहता है।788
दशवैकालिक के आठवें अध्ययन में भी इसी बात का समर्थन मिलता है। 89
योगशास्त्र में कहा है कि क्रोध को क्षमा से, मान को नम्रता से, माया को सरलता से और लोभ को निस्पृहता से जीतें।790
शुक्लध्यान के शिखर पर आरोहण करने के लिए कषाय की अल्पता अनिवार्य है। श्री कन्हैयालाल लोढ़ा ने कहा है- "क्षमादि गुणों में जितनी दृढ़ता एवं वृद्धि होती जाती है, उतनी ही शुक्लध्यान में प्रगति होती जाती है। 791
सामान्य तौर पर व्यक्ति क्रोध आदि के द्वारा दैनिक जीवन में क्रिया-प्रतिक्रिया में रत रहता है। उसके जीवन की गतिविधियों के मुख्य आधार क्रोध, मान, माया और लोभ-रूप कषायभाव ही बन जाते हैं। कषायभाव की वृद्धि, जो पर-पदार्थों के प्रति
783 समवाओ, समवाय-4, सूत्र- 1. 784 विशेषावश्यकभाष्य, गाथा- 2985. 785 कोहविजएणंखन्तिं जणयइ .............. || - उत्तराध्ययनसूत्र- 29/68. 786 माणविजएणं मद्दवं जणयइ ....................... || - वही'- 29/69. 79 मायाविजएणं उज्जुभावं जणयइ ............ || - वही- 29/70.
लोभविजएणं संतोसीभावं जणयइ ............ || - वही- 29/71.. (क) उवसमेण हणे कोहं, माणं मद्दवया जिणे।
मायमज्जव भावेण, लोभं संतोसओ जिणे।। - दशवैकालिकसूत्र- 8/39. (ख) धर्म के दस लक्षण, पृ. 23-28. 790 क्षान्त्या क्रोधो, मृदुत्वेन मानो मायाऽऽर्जवेन च ।
लोभश्चानीहया जेयाः कषायाः इति संग्रहः।। - योगशास्त्र-4/23. 791 ध्यानशतक, संकलन- कन्हैयालाल लोढ़ा, पृ. 104.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org