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________________ स्थानांगसूत्र में कहा है कि आधि, व्याधि तथा उपाधि के ममत्व को त्यागकर पूर्ण निःसंग होना शुक्लध्यान का विवेक नामक तृतीय लक्षण है। 193 अध्यात्मसार में यशोविजयजी ने शुक्लध्यान के तीसरे 'विवके' लिङ्ग की चर्चा करते हुए कहा है कि विवेक, अर्थात् भेद - विज्ञान का पुष्ट होना, देह और आत्मा को भिन्न-भिन्न देखना, अनुभव करना । जीव का शरीर के साथ सर्व-संयोग होते हुए भी देह से भिन्नता का विचार विवेक है । जीव और अजीव का भेदज्ञान - वही विवेक - लक्षण है 1994 ध्यानविचार में कहा गया है कि शुक्लध्यान में रत साधक को विवेक - लक्षण सहज होता है, अर्थात् देह से आत्मा की भिन्नता का ज्ञान होता है। 495 4. व्युत्सर्ग- लक्षण ध्यानशतक में ग्रन्थकार ने शुक्लध्यानी के चौथे व्युत्सर्ग- -लक्षण का उल्लेख करते हुए कहा है कि अनासक्त होकर देह और उपाधि का सर्वथा त्याग करना व्युत्सर्ग है। इसमें साधक में भोगेच्छा और यशेच्छा किंचित् मात्र भी नहीं होती है। वह निरन्तर वीतरागता की ओर बढ़ता जाता है। 496 उपाध्याय यशोविजयजी ने प्रस्तुत ग्रन्थ अध्यात्मसार में शुक्लध्यानी के चौथे लिङ्ग 'व्युत्सर्ग' की व्याख्या करते हुए कहा है कि व्युत्सर्ग का तात्पर्य है- शुक्लध्यानी द्वारा देह और उपधि के संग का निस्संकोच त्याग करना । शरीर और उपधि के प्रति उनका अंशमात्र भी राग या द्वेष- - भाव नहीं रहता है। वे द्रव्य - उपकरण, शरीरादि तथा भाव-कषाय आदि से मुक्त रहते हैं। शुक्लध्यानी का जब तक आयुष्य शेष रहता है, तब तक देह रहता है, परन्तु देह के प्रति उसका ममत्वभाव नहीं रहता है। इस प्रकार अवध, असम्मोह, विवेक और व्युत्सर्ग- इन चार लक्षणों द्वारा शुक्लध्यानी महापुरुष को पहचाना जा सकता है | 497 493 494 495 ध्यानविचारसविवेचन, पृ. 35. 496 स्थानांगसूत्र, चतुर्थ स्थान, उद्देशक - 1, सूत्र - 70. देहोपकरणासंगो व्युत्सर्गाज्जायते मुनिः । - अध्यात्मसार - 16/85. ध्यानविचारसविवेचन, पृ 35. 497 स्थानांगसूत्र, चतुर्थ स्थान, उद्देशक - 1, सूत्र - 70. विवेकात्सर्वसंयोगादभिन्नमात्मानमीक्षते । 498 188 Jain Education International अध्यात्मसार - 16/85. For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003973
Book TitleJinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyashraddhanjanashreeji
PublisherPriyashraddhanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages495
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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