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________________ 158 आचारांगसूत्र की चूलिका के अनुसार- जीवाजीवादि नौ पदार्थ तत्वभूत हैं। वे तत्त्व सम्यक् प्रकार से जानने लायक हैं। इन त वों को विस्तार से जानने वाले व्यक्ति को ज्ञान-भावना होती है। ज्ञान-भावना से मन की एकाग्रता आदि गुण प्रकट होते हैं, इसलिए ज्ञान में वृद्धि, ज्ञानार्जन, स्वाध्याय, निर्जरा हेतु ज्ञानाभ्यास अवश्य करना चाहिए।330 तत्त्वार्थसिद्धवृत्ति में कहा गया है कि ज्ञान का नित्य अभ्यास होने से गुणों को साक्षात्कार करने वाला तथा निश्चय–मति वाला जीव अनायास ही धर्मध्यान में आगे बढ़ने लगता है।331 संक्षेप में इतना ही समझना है कि कषायादि से रहित होकर तटस्थ भाव से जानने की क्रिया का नाम ज्ञान-भावना है।332 अध्यात्मसार में ज्ञान-भावना से मन को भावित करने का मार्गदर्शन देते हुए कहा गया है कि ज्ञान-भावना से निश्चलत्व का लाभ होता है। श्रुतज्ञान के अभ्यास से जीव को हेय, ज्ञेय और उपादेय आदि का ज्ञान होता है। इस भावना से व्यक्ति का भेद-विज्ञान पुष्ट होता है।333 ध्यानविचार में कहा गया है कि ज्ञान-भावना तीन भेद से युक्त है। वे भेद निम्नांकित हैं- 1. सूत्र 2. अर्थ और 3. तदुभय (सूत्र और अर्थ)।334 अ. सूत्र ज्ञान-भावना - मूल पाठ का शुद्ध एवं स्पष्ट उच्चारणपूर्वक अध्ययन करना। ब. अर्थ ज्ञान-भावना - सूत्रों, सिद्धान्तों पर रचित नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, वृत्ति आदि के द्वारा सूत्रों के अर्थों का अध्ययन-मनन करना। स. तदुभय ज्ञान-भावना - सूत्र और अर्थ- दोनों के सन्देश को जीवन में आत्मसात् करना। 330 तत्र ज्ञानस्य भावना ज्ञानभावना ....... भावना भवतीति।। 337 || - आचारांगसूत्र, चूलिका- 3. 331 ज्ञाने नित्याभ्यासा ................ धर्म्य ध्यायति।। - तत्त्वार्थसिद्धवृत्ति. 332 जैनसाधना-पद्धति में ध्यान पुस्तक से उद्धृत, पृ. 268. 333 अध्यात्मसार- 16/19-20. 334 (क) तत्र ज्ञानभावना-सूत्रार्थ तदुभयभेदात् त्रिधा। - ध्यानविचार- 1. (ख) वंजण-अत्थ-तदुभय ................ || - श्रावकाचार के पंचाचार में ज्ञानाचार के अन्तर्गत. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003973
Book TitleJinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyashraddhanjanashreeji
PublisherPriyashraddhanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages495
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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