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________________ ___141 अनेक ग्रन्थों में धर्मध्यान के चार प्रकारों का वर्णन मिलता है, जैसेस्थानांगसूत्र, भगवतीसूत्र, औपपातिक, समवायांग, ध्यानदीपिका, अध्यात्मसार, योगशास्त्र, ज्ञानार्णव, धवलाटीका, आदिपुराण इत्यादि। ____ ध्यानशतक के अन्तर्गत धर्मध्यान के चार प्रकारों का वर्णन किया गया है, वे इस प्रकार हैं 1. आज्ञाविचय 2. अपायविचय 3. विपाकविचय 4. संस्थानविचय धर्मध्यान के चार भेदों में से प्रथम 'आज्ञाविचय' का निरूपण करते हुए ग्रन्थकार लिखते हैं1. आज्ञाविचय-धर्मध्यान - अत्यधिक निपुणता से युक्त, समस्त जीवराशि का हित चाहने वाली, स्याद्वाद एवं अनेकान्त-दृष्टि से युक्त, गहनार्थ वाली, निरवद्य, नयप्रमाणयुक्त, आगमरूप जिनवाणीरूपी भगवान् की आज्ञा का चिन्तन करना आज्ञाविचय नामक धर्मध्यान का पहला प्रकार है।216 आज्ञा को हम आगम, सिद्धान्त, जिनवचन भी कह सकते हैं, क्योंकि ये तीनों ही एकार्थक या पर्यायवाची हैं।217 यथार्थ का अन्वेषण करने वाला ध्यानविचय कहलाता है। विचिति, विवेक, विचय, विचारणा, अन्वेषण और मार्गण- ये सभी समानार्थक हैं।218 216 सुनिउणमणाइणिहणं भूयहियं भूयभावणमणग्छ । अमियमजियं महत्थं महाणुभावं महाविसयं ।। झाइज्जा निरवज्जं जिणाणआणं जगप्पईवाणं। अणिउणजणदुण्णेयं नय-भंग-पमाण-गमगहणं ।। तत्थय मइदोब्बलेणं तविहायरियविरहओ वावि। णेयगहणत्तणेणय णाणावरणोदएणं च।।। हेऊदाहरणासंभवे य सइ सुद्द जं न बुज्झेज्जा। सव्वण्णुमयमवितहं तहावि न चितए मइमं ।। - ध्यानशतक, गाथा- 45-48. 217 तत्थ आणा णाम आगमो सिद्धतो जिनवयणमिदि एयट्ठो।। - षट्खण्डागम, भाग- 5, धवलाटीका, पृ. 70. 218 तत्त्वार्थवार्त्तिक- 9/36. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003973
Book TitleJinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyashraddhanjanashreeji
PublisherPriyashraddhanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages495
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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