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________________ हिंदू परंपरा में यज्ञ-याग तथा षोडश संस्कारों की मान्यता है। ब्राह्मण आदि जनेऊ धारण करते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि हिन्दू धर्म भी विधि-विधान की पूर्ण उषेधा करके नही चलता है। उसमें विशेष प्रसंगों पर यज्ञ आदि करना, विशिष्ट शैली में वेद मंत्रो का उच्चारण करना, रामायण का पाठ करना, नवग्रह का अनुष्ठान करना, करवा-चौथ, उबछठ, नवरात्रि में उपवास करना, श्राद्ध करना, संध्या एवं भक्ति करना, वानप्रस्थ तथा सन्यास धर्म स्वीकार करना आदि अनेक प्रकार के धार्मिक विधान किये जाते है। इस प्रकार विविध धर्मों पर दृष्टिपात करने पर ज्ञात होता है कि सभी धर्म परंपराओं में उपासना की कोई न कोई विधि प्रचलित रही है। जैन धर्म भी इसका अपवाद नहीं है। जैन परंपरा में विविध विधि-विधान जैन धर्म में भी विधि विधानों का यह विवरण जानने योग्य है। साधु एवं ग्रहस्थ वर्ग से संबंधित विधि-विधानों में गुरूवन्दन विधि, सामायिक विधि, देव-वन्दन विधि, प्रतिक्रमण विधि, चैत्यवन्दन विधि, प्रत्याख्यान विधि, पौषध-विधि, देशावकासिक-विधि, जिनपूजा-विधि, मुनि को आहार प्रदान करने की विधि आदि विधान प्रचलित है। दिगम्बर परंपरा के तारण-पंथ एवं श्वेताम्बर परंपरा में स्थानकवासी एवं तेरापंथ के अतिरिक्त शेष परंपराओं में जिनप्रतिमापूजन के विभिन्न विधि-विधान, श्रावक के षट् आवश्यकों एवं षट् कर्तव्यों सभी जैन परम्पराओं में माने गये हैं। श्वेताम्बर परंपरा में पूजा-अर्चना से सम्बन्धित विविध प्रकार के विधान प्रचलित है, जिनमें विशेष प्रकार से अष्टप्रकारीपूजा, स्नात्रपूजा, पंचकल्याणकपूजा, लघुशान्तिनात्रपूजा, वृहदशान्तिस्नात्रपूजा, सिद्धचक्रपूजा, नवपदपूजा, सत्रहभेदीरायपूजा, अष्टकर्मनिवारकपूजा, अष्टकर्मनिवारकपूजा, आरतीपूजा, अर्हत्पूजा, भक्ताम्बरमहापूजा, जहतिहुअण–महापूजन, पद्मावती-पार्श्वनाथ महापूजन, नवग्रहपूजन, उवसग्गहरंमहापूजन, सरस्वतीदेवीमहापूजन आदि विशेष प्रचलित 645 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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