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________________ (ऊनोदरी-तप) करना कितना श्रेयस्कर है। चिकित्सक भी आजकल यही सलाह देते हैं कि भूख से कम खाएं, तो यह जैनधर्म का ऊनोदरी-तप ही तो है। ___ ऋषभ एवं महावीर ने हमारी आत्मा का और साथ ही हमारे स्वास्थ्य का पूर्णतः ध्यान रखते हुए ही इस प्रकार के तपों का विधान किया। वृत्ति-संक्षेप- वैसे तो साधुओं के लिए विशेष रूप से प्रयोग करने की प्रवृत्ति है, पर आज गृहस्थवर्ग भी यदि वृत्ति-संक्षेप-तप का उपयोग करता है, तो गृहस्थ-वर्ग की भूमिका भी महत्वपूर्ण बनती है, क्योंकि वृत्तियों के संक्षेप से उदारता एवं निरभिमानता का गुण प्रकट होता है। रस-परित्याग- रस-परित्याग का भी स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यन्त मूल्य है। ज्ञातव्य है कि यहाँ रस का तात्पर्य स्वादिष्ट एंव गरिष्ठ भोजन है। इन गरिष्ठ पदार्थों के निरन्तर उपयोग ने तन को रोगों का निकेतन बना दिया है। व्यक्ति मधुमेह, रक्तचाप, वात आदि कई व्याधियों का शिकार होता जा रहा है, जिसका परिणाम दुःखद मिलता जा रहा है। आज चिकित्सक भी घी, मिठाई आदि का निषेध करते हैं। इस प्रकार, रस-परित्याग का अपने आप में महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि यह इन्द्रियजय एंव संयम का भी माध्यम है। काय-क्लेश- शारीरिक एवं मानसिक तनाव से मुक्त होने के लिए यह तप अत्यन्त उपयोगी है। आज के चिकित्सक एवं प्राकृतिक चिकित्सकों का यही कहना है कि शारीरिक एवं मानसिक-स्वस्थ्यता के लिए योग, आसन, प्राणायाम करें। वें एक्यूपंक्चर, एक्यूप्रेशर (नस दबाकर, सुई चुभाकर) रोगों के निवारण का उपक्रम करते हैं। केश-लूंचन एक्यूपंक्चर का ही एक प्रकार है। कायक्लेश-तप आसन, योग-साधना का ही एक अंग है, अतः इस तप को करने वाला साधक हर प्रकार के तनाव से मुक्त रहता है और तनावमुक्त जीवन ही दुःखों से मुक्ति है। इन्द्रिय आदि के प्रति संलीनतारूपी तप स्वास्थ्य की अपेक्षा से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। आज के चिकित्सकों का भी कहना है कि इन्द्रियों का उपयोग गलत स्थानों पर न करें, अन्यथा इसका प्रभाव शरीर पर पड़ेगा, जिसका परिणाम रोगों का बढ़ावा होगा। चिकित्सक क्रोध आदि से बचने की भी सलाह देते हैं। क्रोध आदि कषायों 601 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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