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________________ पंचम-अध्याय पंचाशक-प्रकरण में तपविधि तप का अर्थ एवं स्वरूप- जैनधर्म में मोक्षमार्ग की विवेचना के प्रसंग में प्राचीन आगमों में चतुर्विध मोक्षमार्ग का उल्लेख है। उत्तराध्ययनसूत्र के अट्ठाइसवें 'मोक्षमार्ग-गति' नामक अध्ययन में चतुर्विध मोक्ष का प्रतिपादन किया गया है। उसमें कहा गया है कि भगवान् महावीर ने सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र और सम्यक्तप- ऐसे चतुर्विध मोक्षमार्ग का विवेचन किया है। उसी अध्याय में आगे यह भी कहा गया है कि सम्यग्ज्ञान के माध्यम से आत्मा के स्वरूप को जानें, सम्यग्दर्शन के माध्यम से उस पर रहा करें, सम्यक्चारित्र के माध्यम से आत्मा का ग्रहण करें और सम्यक्तप के माध्यम से आत्मा की शुद्धि करें। इस प्रकार से, जैनदर्शन में तप को ही आत्म-विशुद्धि का साधन माना गया है। अन्यत्र यह भी कहा गया है कि तप के द्वारा ही कर्मों की निर्जरा होती है और आत्मा की विशुद्धि होती है, साथ ही, आत्मा कर्मों से रहित होकर मोक्ष को प्राप्त करती है। इस प्रकार, जैनदर्शन में तप को मोक्ष का अन्यतम कारण माना गया है। चूंकि कर्मों से विशुद्ध आत्मा ही मोक्ष को प्राप्त करती है और कर्मों से विशुद्धि तप के द्वारा ही होती है, अतः तप मोक्ष का अंतिम हेतु है। जिस प्रकार मक्खन की शुद्धि के लिए उसे तपाना आवश्यक है, उसी प्रकार आत्मा को कर्मों से मुक्त करने के लिए आत्मा को तपाना आवश्यक माना गया है। तप का सामान्य अर्थ है- तपाना। जिस प्रकार से धातुओं को तपाकर उनकी अशुद्धि दूर की जाती है, उसी प्रकार तप के द्वारा आत्मा को तपाकर आत्मा की अशुद्धि दूर की जाती है। आत्मा को तपाने का सामान्य अर्थ आत्मा की आसक्ति को कम करना है। आत्मा के आसक्ति का मुख्य केंद्र शरीर होता है, अतः देहासक्ति को तोड़ने के लिए तप आवश्यक है। दूसरे शब्दों में कहें, तो तप निर्ममत्व की साधना का ही एक रूप है, क्योंकि जब तक ममत्व का विघलन नहीं होता है, तब तक समत्व की प्राप्ति भी संभव नहीं है और बिना समत्व की प्राप्ति के, अर्थात् रागद्वेष से मुक्त हुए बिना मोक्ष भी असम्भव है, इसीलिए जैन आचार्यों ने मोक्ष के अंतिम कारण के रूप में तप की चर्चा की 575 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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