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शक्ति होने पर भी मद और प्रमाद के वशीभूत होकर अभिग्रह धारण नहीं करना अतिचार है, अतः आत्मशुद्धि के लिए उस अतिचार को भी गुरु के सामने प्रकाशित कर आलोचना करना चाहिए। उपसंहार- जो साधु आगमानुसार बताई हुई प्रतिमाओं को धारण करता है और यदि शक्ति नहीं हो, तो अभिग्रह धारण करता है, वह वास्तव में जिनाज्ञा का पालन करने वाला है। जिनाज्ञा को पालन करने वाला यदि छोटे से छोटा, सरल से सरल अभिग्रह भी धारण करता है, तो उसे दोष नहीं लगता है, क्योंकि वह अपनी शक्ति को छिपाए बिना शक्ति-अनुसार अभिग्रह धारण कर रहा होता है। यही बात आचार्य हरिभद्र ने भिक्षुप्रतिमा-कल्पविधि-पंचाशक की अंतिम पचासवीं गाथा में' कही है
इन सभी अभिग्रहों को अपनी शक्ति और जिनाज्ञा के अनुसार धारण करने वाले जीव शीघ्र ही संसार से मुक्त होते हैं।
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1 पंचाशक-प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि- 18/50 – पृ. - 332
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