________________
1. मास-पर्यन्त भोजन की एक ही दत्ति लेना चाहिए। एक समय में धार टूटे बिना पात्र में जितना पड़े, वह एक दत्ति है। 2. एक महीना तक पानी की भी एक दत्ति ही लेना चाहिए। 3. भिक्षा ऐसी जगह से ले, जहाँ किसी को यह पता न हो कि भिक्षा लेने वाले को कितनी दत्ति लेने का नियम है। 4. पूर्वोक्त सात ऐषणाओं में से प्रथम दो के अतिरिक्त पांच में से किसी एक एषणा से भोजन ले। 5. चिकनाई रहित आहार ले। 6. जिस आहार को भिखारी आदि भी न लेना चाहते हों, वैसा आहार ले। 7. एक ही मालिक के आहार को ले। 8. गर्भिणी, छोटे बच्चे वाली और धाय माँ (दूध पिलाने वाली) के हाथ का भोजन न ले। 9. एक पैर दरवाजे के बाहर और एक पैर दरवाजे के अंदर रखकर भोजन दे, तो ले। 10. दिन में सुबह, दोपहर या शाम को भिक्षा के लिए निकले। 11. छ: गोचर भूमियों में गोचरी ले। जिस प्रकार गाय ऊँची-नीची घास में चरती -फिरती है, उसी प्रकार साधु ऊँच-नीच घरों में भिक्षा के लिए फिरते हैं- यही गोचर है। छ: गोचर-भूमियाँ निम्न हैं(1) पेटा (2) अर्द्धपेटा (3) गोमूत्रिका (4) पतंगवीथिका (5) शम्बूकवृत्ता और (6) गत्वाप्रत्यागता।
(1) पेटा- पेटी की तरह गांव को चार भागों में विभक्त करके बीच के घरों को छोड़कर चारों दिशाओं में कल्पित चार पंक्तियों में ही गोचरी को जाना। (2) अर्द्धपेटा- . पेटा की तरह पंक्ति की कल्पना करके मात्र दो दिशाओं की दो पंक्तियों में जाना। (3) गोमूत्रिका - चलते हुए बैल के द्वारा पेशाब करने से जमीन पर जो आकृति बनती है, उसी प्रकार गोचरी करना चाहिए, अर्थात् एक घर में जाने के बाद उसके
557
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org