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________________ 1. अशन 2. पान 3. खादिम 4 स्वादिम 5. वस्त्र 6 पात्र 7. कम्बल 8. रजोहरण - ऐसा कुल आठ प्रकार का राजपिण्ड होता है । कृतिकर्म का स्वरूप- श्रमणों में ज्येष्ठ मुनियों के आगमन पर उनका सम्मान करना एवं वंदन करना कृतिकर्म है। आचार्य हरिभद्र ने स्थितास्थितकल्पविधि - पंचा की तेईसवीं गाथा मेँ कृतिकर्म के स्वरूप को स्पष्ट किया है। अभ्युत्थान और वंदन के भेद से कृतिकर्म दो प्रकार का होता है। साधुओं और साध्वियों को अपनी चारित्रपर्याय-रूप योग्यता, अर्थात् वरिष्ठता के अनुसार दोनों प्रकार का कृतिकर्म करना चाहिए। अभ्युत्थान का अर्थ है- आचार्य आदि के आने पर उनके सम्मानस्वरूप खड़े हो जाना और वंदन का अर्थ है- द्वादशावर्त से वंदन करना आदि । पर्यायवृद्ध साध्वी को भी छोटे साधुओं की वंदना करना चाहिए, क्योंकि धर्म पुरुष प्रधान है, अतः संयम ग्रहण करने के पश्चात् पर्याय-स्थविर साध्वी के द्वारा वन्दनीय हो जाता है। दीक्षा के प्रदायक तथा चौदह पूर्वो के अध्ययन आदि के साध्वी द्वारा वन्दनीय हैं। इसी बात को पुष्ट स्थितास्थितकल्पविधि - पंचाशक की चौबीसवीं गाथा में आज का नवदीक्षित मुनि भी चूंकि धर्म - प्रवर्त्तन, उपस्थापनारूप अधिकारी पुरुष ही हैं, इसलिए वे करते हुए आचार्य हरिभद्र ने स्पष्ट लिखा है अल्प संयम - पर्याय वाली या अधिक संयम - पर्याय वाली साध्वियों को आज के नवदीक्षित साधु की भी वन्दना करना चाहिए, क्योंकि सभी तीर्थंकरों के तीर्थों में धर्म को पुरुषों ने ही प्रवर्त्तित किया है, इसलिए धर्म पुरुष - प्रधान है। साधु यदि साध्वियों की वन्दना करें, तो तुच्छता के कारण स्त्री को गर्व होगा। गर्व वाली साध्वी साधु का अनादर करेगी, इस प्रकार साध्वियों को अनेक प्रकार के दोष लगते हैं । जो संयम - पर्याय में ज्येष्ठ हो और उन्हें वन्दन नहीं करे, तो भी वह दोषों का भागी बनता है, अर्थात् अहंकार का शिकार बनता है और यह अहंकार का शिकार ' पंचाशक - प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि - 17 / 24 - पृ. - 302 2 पंचाशक - प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि- 17 / 25- पृ. - 302 Jain Education International For Personal & Private Use Only 541 www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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