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अभिहृत और उभिन्न-दोष का स्वरूपअभिहृत-दोष- साधु को देने के लिए अपने स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया गया आहार अभिहृत-दोष है। उभिन्न-दोष- साधु के लिए बन्द थैली आदि खोलकर तथा अलमारी, कोठी, कोठरी आदि का ताला, सांकल आदि खोलकर आहार देना उभिन्न-दोष है।
____ आचार्य हरिभद्र ने प्रस्तुत दोषों का वर्णन पिण्डविधानविधि की तेरहवीं गाथा में किया है।
___स्वग्राम, अर्थात् साधु जिस ग्राम में रहते हों, उसके अतिरिक्त दूसरे ग्राम आदि से आहार लाकर साधु को देना अभिहृत-दोष है।
गोबर आदि से लीपकर बन्द किए गए डेहरी आदि के लेप को खोलकर या जो अलमारी प्रतिदिन नहीं खुलती है, उसे खोलकर साधु को आहारादि देना उद्भिन्न-दोष है। मालापहृत और आच्छेद्य-दोष का स्वरूपमालापहृत-दोष- साधु को देने के लिए ऊपरी मंजिल से, अथवा टाण्ड, छींका या अलमारी आदि के ऊपर से आहार लाकर बहराना मालापहृत-दोष है। आच्छेय-दोष- साधु को देने के लिए पुत्रादि को दी हुई वस्तु को वापिस ले लेना आच्छेद्य-दोष है।
__ आचार्य हरिभद्र प्रस्तुत पंचाशक-प्रकरण के अन्तर्गत् पिण्डविधानविधि-पंचाशक की चौदहवीं गाथा में प्रस्तुत विषय की चर्चा करते हैं।
___ साधु को देने के लिए ऊपरी मंजिल या भूमिगत कमरे से आहारादि निकालकर दें, तो यह मालापहृत-दोष कहलाता है।
___ मालिक, नौकर, बालक आदि की किसी भी वस्तु को जबर्दस्ती लेकर साधु को दें, तो आच्छेद्य-दोष होता है। इसके गृहस्वामी, नृप और चोर के आधार पर तीन भेद
पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि- 13/13 - पृ. - 226 - पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि- 13/14 - पृ. - 227
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