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________________ ___ इसी प्रकार, पश्चिम-दक्षिण दिशा में भवनपतियों, व्यन्तरों तथा ज्योतिषियों की देवियों की स्थापना करने का निर्देश दिया है तथा भवनपति-व्यन्तर तथा ज्योतिषी देवताओं की स्थापना केवल पश्चिमोत्तर की ओर करने के लिए निर्दिष्ट किया है। वैमानिक-देव, मनुष्य और स्त्रियों की स्थापना पूर्वोत्तर दिशा की ओर करने का संकेत किया है तथा यह भी निर्दिष्ट किया है कि इन सबकी स्थापना उसी जाति के देवता के शरीर के वर्ण के अनुसार करना चाहिए। आचार्य हरिभद्र ने तिर्यंच प्राणियों के लिए निर्देश दिया है कि हाथी, घोड़ा, सिंह, मृग, सर्प, नेवला आदि प्रमुख तिर्यंच प्राणियों को समवसरण में द्वितीय प्राकार में स्थापना करना चाहिए। तीसरे प्राकार में देवताओं को विमानों को रखने तक का निर्देश दिया है। ___आचार्य जिनभद्रसूरि ने प्रव्रज्या के पूर्व नन्दी-रचना की विधि का विवरण दिया है, जिसमें उन्होनें स्थलशुद्धि का भी प्रतिपादन मन्त्रोच्चारण के साथ किया है। स्थापनाविधि आचार्य हरिभद्र के पंचाशक-जिनदीक्षाविधि के अनुसार ही है।' आचार-दिनकर में स्थलशुद्धि हेतु विशेष विवरण नहीं है, इतना ही निर्देश दिया गया है कि पौष्टिक-कर्म करना चाहिए।' दीक्षार्थी का समवसरण में प्रवेश- आचार्य हरिभद्र ने पंचाशक-प्रकरण के द्वितीय जिनदीक्षाविधि पंचाशक में दीक्षार्थी किस प्रकार समवसरण में प्रवेश करे- इस विधि को निम्न तेईसवीं एवं चौबीसवीं गाथाओं में प्रस्तुत किया है दीक्षार्थी को द्रव्य एवं भाव से योग्य एवं शुद्ध बनकर शुभ-मुहूर्त में बहुमानपूर्वक अपनी समृद्धि के अनुसार रचित समवसरण में प्रवेश करने का निर्देश दिया है। तत्पश्चात् जिनेश्वर परमात्मा के गुणों के प्रति तीव्र श्रद्धा वाले उस दीक्षार्थी को संक्षेप में जिनशासन की विधि बतलाने का निर्देश दिया है तथा वह विधि भी बताई गई है। दीक्षार्थी से कहा जाता है कि तुम्हारी अंजलि में पुष्प दिया जाएगा। पुष्प देने के बाद विधिमार्ग प्रपा - जिनप्रभुसूरि - नन्दीविधि- 12 वां द्वार आचार दिनकर - वर्धमानसूरि - प्रव्रज्याविधि 3 पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि- 2/23 एवं 24 – पृ. - 27 4 पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि-2/25 - पृ. - 28 393 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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