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________________ आहारपोसहो खलु सरीरसक्कारपोसहो चेव । बंभव्वावारेसु यं एयगया धम्मवुड्ढित्ति।।' त्याग की अपेक्षा से पौषध चार प्रकार का है1. आहारत्याग-पौषध 2. शरीरसत्कार-त्याग-पौषध 3. अब्रह्मचर्य-त्याग-पौषध और 4. व्यापारत्याग-पौषध। इन चार प्रकार के त्याग से पौषधधारी श्रावक धर्म की वृद्धि करता है। पौषध में त्याज्य अतिचार- आचार्य हरिभद्र ने पंचाशक-प्रकरण में उपासक -प्रतिमाविधि के अन्तर्गत पौषध में त्याज्य अतिचारों का प्रतिपादन करते हुए कहा है अप्पडिदुप्पडिलेहियसेज्जासंथारयाइ वज्जेति। सम्मं च अणणुपालण माहारादीसु एयम्मि ।।452 पौषध-प्रतिमाधारी पौषध में अप्रत्युपेक्षित-दुश्प्रत्युपेक्षित-शय्या-संस्तारक, अप्रमार्जित-दुष्प्रमार्जित-शय्या-संस्तारक, अप्रत्युपेक्षित-दुष्प्रत्युपेक्षित-उच्चारप्रश्रवण- भूमि और अप्रमार्जित-दुष्प्रमार्जित-उच्चारणप्रश्रवणभूमि- इन चार अतिचारों का त्याग करता है, साथ ही पौषध का सम्यक् रूप से परिपालन करता है। इस प्रकार, गृहस्थ-श्रावक आध्यात्मिक विकास में अग्रसर होने के लिए अष्टमी, चतुर्दशी आदि पर्व-दिनों में उपवास करता है एवं पौषध ग्रहण करता है। उस दिन वह सावद्य-क्रिया से उपरत होकर स्वाध्याय, पठन-पाठन, ध्यान, चिन्तन-मनन आदि करता है एवं यह पौषध एकान्त स्थान में, अथवा उपाश्रय आदि धार्मिक स्थलों में करने हेतु जाता है। पौषधप्रतिमा का विधान दोनों परम्पराओं में प्राप्त होता है एवं आचार्य हरिभद्र ने पौषध में आहार, अब्रह्मचर्य आदि का भी त्याग अपेक्षित माना है। कायोत्सर्ग-प्रतिमा- कायोत्सर्ग का अर्थ काया का उत्सर्ग करने से है, अर्थात् कुछ समय के लिए काया का मोह छोड़कर आत्मधर्म में स्थित होना कायोत्सर्ग है। 357 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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