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________________ श्रृंगार अपने लिए भी ममत्व का कारण है और अन्यों के लिए भी ममत्व, स्पर्धा, ईर्ष्या आदि का कारण है। पौषध के दिन श्रावक को श्रमण के तुल्य माना है, जिसका उल्लेख आवश्यकनियुक्ति में मिलता है कि सामायिक में रहा हुआ श्रावक श्रमण के तुल्य होता है, क्योंकि पौषध में सामायिक सन्निहित है। 3. ब्रह्मचर्य का पालन- पौषधव्रत में आठ प्रहर तक ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। यदि चार प्रहर का पौषध है, तो भी शेष समय में ब्रह्मचर्यव्रत का पालन करना चाहिए। 4. अव्यापार- पौषध में रहे हुए श्रावक को किसी भी प्रकार का व्यापार नहीं करना चाहिए और न व्यापार-सम्बन्धी बातें करना चाहिए। महिलाओं को भी विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए कि पौषध में रुपयों-पैसों का आदान-प्रदान नहीं करें, अर्थात् साधुवत् रुपयों को हाथ भी नहीं लगाना चाहिए तथा घर की, अथवा तिजोरी (अलमारी) आदि की चाबी भी अपने पास में नहीं रखनी चाहिए। यदि किसी कारणवश चाबी अपने पास रखना भी पड़े, तो पौषध में होने के कारण दूसरों को ताला खोलने के लिए चाबी नहीं देना चाहिए। चाबी नहीं देने का एक कारण यह भी है कि वह, जिसे चाबी दी जा रही है, किसी भी वस्तु का हिंसात्मक के रूप में उपयोग न कर ले। पौषध करने के चार कारण में- पौषध में निम्न चार कारणों से पांच अणुव्रतों का पालन करने एवं चार संज्ञा को विजय प्राप्त करने की प्रवृत्ति होती है1. आहार–पौषध- अहिंसाणुव्रत के पालन हेतु एवं आहार-संज्ञा पर नियंत्रण करने हेतु आहार–पौषध है । 2. शरीर-सत्कार पौषध- शरीर के ममत्व के त्याग द्वारा भयसंज्ञा पर विजय प्राप्त करने हेतु शरीर-सत्कार पौषध है । 3 ब्रह्मचर्य-पौषध- ब्रह्मचर्याणुव्रत-पालन हेतु एवं मैथुन-संज्ञा पर विजय प्राप्त करने हेतु ब्रह्मचर्य-पौषध है। . 4. अव्यापार–पौषध- सत्याणुव्रत, अचौर्याणुव्रत एवं परिग्रह-परिमाणव्रत पालन हेतु तथा परिग्रह-संज्ञा पर रोकथाम हेतु अव्यापार–पौषध है। 322 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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