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________________ पुरुषार्थ - सिद्धुपाय में इसकी अनिवार्यता दो बार ही बताई है - प्रातःकाल एवं सांध्यकाल, फिर भी अन्य समय में की हुई सामायिक को दोषपूर्ण नहीं माना गया है । सामायिक का स्थान सामान्यतया सामायिक उपाश्रय या पौषधशाला में ही करना चाहिए, अथवा फिर ऐसे एकान्त एवं पवित्र स्थल में करना चाहिए, जहां मन विचलित न हो । सामायिक के भेद शास्त्रों में सामायिक के एक से लेकर अनेक संख्या तक भेद किए गए हैं, परन्तु यहाँ मुख्य रूप से दो भेदों का निरूपण किया जा रहा है, जो हैं- 1. द्रव्य व 2. भाव । द्रव्य - सामायिकसामान्यतया सामायिक की वेशभूषा पहनकर उस हेतु निर्धारित बाह्य-क्रिया करना द्रव्य सामायिक है, किन्तु आचार्य हरिभद्र के अनुसार, मिट्टी और स्वर्ण में समान भाव रखना द्रव्य - सामायिक है। भाव - सामायिकजो मित्र और शत्रु में क्रमशः राग-द्वेष न रखकर अपने को समस्त सावद्य-क्रिया से दूर रहते हुए स्वयं में रहता है, वही भाव - सामायिक है।' यहाँ शंका है कि द्रव्य - सामायिक में मिट्टी और स्वर्ण को समान समझता है तथा भाव-सामायिक में शत्रु और मित्र को समान समझता है। दोंनों में समान बुद्धि है, फिर भी द्रव्य व भाव दो भेद करने का अर्थ समझ में नहीं आता है। इसका समाधान दोनों ही व्याख्या से स्पष्ट है कि जो द्रव्यों में स्वर्ण व मिट्टी को समान समझता है, उसका वह समझना सरल है, परन्तु स्वर्ण व मिट्टी को समान समझने वाला शत्रु एवं मित्र को समान समझे, यह आवश्यक नहीं है, इसी कारण द्रव्य व भाव - सामाि अर्थ समान होने पर भी उनमें बहुत अन्तर है। चूंकि द्रव्य - सामायिक के परिणाम भाव - सामायिक में सहयोगी हैं, पर भाव - सामायिक नहीं हैं तथा मिट्टी व स्वर्ण के समान समझने वाला शत्रु व मित्र को समान समझे, यह नहीं कह सकते, पर शत्रु व मित्र को समान समझने वाला स्वर्ण व मिट्टी को समान ही समझेगा, यह निश्चित है, अतः 1 श्रावकाचार - प्रश्नोत्तर - पं. हीरालाल - 18/25 Jain Education International For Personal & Private Use Only 300 www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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