SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 315
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सामायिक-व्रत - पंचाशक-प्रकरण में आचार्य हरिभद्र ने अणुव्रतों को पुष्ट करने के लिए श्रावकधर्मविधि-पंचाशक में गुणव्रतों का उल्लेख किया है तथा गुणव्रतों को परिपुष्ट करने के लिए शिक्षाव्रतों का प्रतिपादन किया है। शिक्षाव्रतश्रमण-जीवन जीने की प्रारम्भिक भूमिका है। आचार्य हरिभद्र ने पंचाशक-प्रकरण में शिक्षाव्रतों के चार विभाग किए हैं, जिनका प्रारम्भ सामायिक-व्रत से किया गया है, अर्थात् पंचाशक-प्रकरण के अनुसार शिक्षाव्रत का क्रम इस प्रकार है- 1. सामायिक-व्रत 2. देशावकासिक-व्रत 3. पौषध-व्रत और 4. अतिथि संविभाग-व्रत।' उपासकदशांगटीका में भी शिक्षाव्रतों का यही क्रम है, परन्तु संविभाग के स्थान पर यथासंविभाग नाम दिया गया है। ___तत्त्वार्थ-सूत्र में शिक्षाव्रतों के क्रम में भेद है- सामायिकव्रत, पौषधोपवासव्रत, उपभोग-परिभोग परिमाणव्रत, अतिथिसंविभागवत। उसमें उक्त क्रम में देशावकासिकव्रत का उल्लेख नहीं है। आतुर–प्रत्याख्यान में चार भेद इस प्रकार हैं- भोगों का परिमाणव्रत, सामायिकव्रत, अतिथिसंविभागवत और पौषधोपवासव्रत। श्रावक से श्रमणत्व की ओर जाना ही साधक का लक्ष्य होता है। अणुव्रतों से महाव्रतों की ओर जाना जिनका उद्देश्य है, देशविरति से सर्वविरति की ओर जाना जिनका ध्येय है, आगार से अणगार बनने का जिनका साध्य है, ऐसे अणुव्रती श्रावक शिक्षाव्रत द्वारा श्रावक-जीवन में भी श्रमणत्व बनने का अभ्यास करते हैं। सामायिकव्रत- आचार्य हरिभद्र ने पंचाशक-प्रकरण की पच्चीसवीं गाथा में सामायिकव्रत के विषय का प्रतिपादन किया है सिक्खावयं तु एत्थं सामाइयमो तयं तुं विण्णेयं । सावज्जेयर जोगाण वज्जणा सेवणा रूवं ।।" 1 पंचाशक-प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि - पृ. - 10,11,12 2 उपासकदशांग टीका - आ. अभयदेवसूरि - पृ. - 50 3 तत्त्वार्थ-सूत्र – आ. उमास्वाति-7/16 आतुर-प्रत्याख्यान - पृ. - 15 5 पंचाशक-प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि-1/25 - पृ. - 10 296 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy