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अणुव्रती श्रावक यह ध्यान रखे कि कहीं उसके नियम भंग न हो जाएं, क्योंकि लेन-देन में अधिक या कम करना एक प्रकार की चोरी है। जैसे घी का भाव 150 रु. किलो है, यदि किसी को इसी भाव में घी दिया, पर तौल में घी कम कर दिया, तो यह चोरी है। 25 रु. मीटर कपड़े का भाव है। यदि किसी को कपड़ा 25 रु. में दिया, पर कपड़ा कुछ कम कर दिया, तो बस यही चोरी है। अतः, पंचाशक-प्रकरण में आचार्य हरिभद्र ने अणुव्रती श्रावक को निर्देश दिया है कि- इस प्रकार के अतिचार का त्याग करें। प्रतिरूपक-व्यवहार- आचार्य हरिभद्रसूरि पंचाशक-प्रकरण में अणुव्रती श्रावकों के लिए तीसरे अणुव्रत के पंचम अतिचार को बताया कि जो नकली वस्तु का व्यापार करता हैयह प्रतिरूपक-अतिचार है।
उपासकदशांगटीका' एवं श्रावकप्रज्ञप्ति के अनुसार इसका कूटतुला-कूटमान जैसा शब्दार्थ करते हुए कथन किया गया है कि अधिक मूल्य वाली वस्तु में उसके समान कम मूल्य वाली वस्तु को मिला देना, नकली को असली बता देना आदि प्रतिरूपक-व्यवहार है।
तत्त्वार्थ-सूत्र मे असली के बदले नकली वस्तु देना प्रतिरूपक है।' 'सम्यग्दर्शन से मोक्ष' नामक ग्रन्थ के अनुसार मिलावट करना, अधिक मूल्य की वस्तु में कम मूल्य की वस्तु मिलाकर विक्रय करना, शुद्ध वस्तु में अशुद्ध वस्तु मिलाना और असली के प्रति नकली वस्तुओं का व्यापार करना आदि प्रतिरूपक-व्यवहार -अतिचार है।
अणुव्रती श्रावक अपने व्रत को अखण्ड रखने के लिए ध्यान रखे कि कहीं व्रत दूषित न हो जाए, क्योंकि व्यापार में धोखेबाजी खूब होने लगी है, न्याय प्रामाणिकता
1 पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - 1/14 - पृ. - 5
पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - 1/14 - पृ. - Jउपासकदशांगटीका - आचार्य अभयदेवसूरि- 1/47 - पृ. -43 4 श्रावकप्रज्ञप्तिटीका - आचार्य हरिभद्र - गाथा - पृ. - 158
तत्त्वार्थ-सूत्र - आचार्य उमास्वाति-7/22 ' सम्यग्दर्शन से मोक्ष - साध्वी सम्यग्दर्शनाश्रीजी-1/209 - पृ. - 209 7 पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - पृ. -5
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