________________
प्रशंसा करना, चोरी करना या करवाना, अथवा चोरी करते हुए की प्रशंसा करना स्तेन (तस्तक) है।
__अणुव्रतधारी को सतर्क रहने की आवश्यकता है। श्रावक चोरों के साथ व्यापार न करे तथा न उनको सहयोग दे। चाहे सहयोग देने में अपना स्वार्थ नहीं भी है, फिर भी चोर को चोरी करने का बढ़ावा देना भी दोषपूर्ण है, अतः पंचाशक-प्रकरण में स्पष्ट कहा है कि- अणुव्रतधारी के लिए यह अतिचार वर्जनीय है।' विरुद्धराज्यातिक्रमण - आचार्य हरिभद्र ने पंचाशक-प्रकरण में तृतीय अणुव्रत के तृतीय अतिचार का वर्णन करते हुए कहा है कि जिस राज्य में जाना निषिद्ध हो, उस राज्य में या उस राज्य के सैन्य-क्षेत्र में जाना, अथवा राज्य के आदेश के विरुद्ध आचरण करना विरुद्धराज्यातिक्रम है।
उपासकदशांग की टीका में आचार्य अभयदेवसूरि ने कहा है- विरोधी शासकों द्वारा जहाँ प्रवेश निषेध किया गया है, उस सीमा का उल्लंघन करना व राज्य–विरुद्ध कार्य करना विरुद्धराज्यातिक्रम है।
श्रावकप्रज्ञप्तिटीका के अनुसार दो अलग-अलग राजाओं के राज्य से वस्तुओं को लाने-ले जाने के लिए कुछ नियम निर्धारित रहते हैं, उनका उल्लघंन कर एक राज्य से दूसरे राज्य में ले जाना व दूसरे राज्य से अपने राज्य में ले आना विरुद्धराज्यातिक्रम है।
तत्त्वार्थ-सूत्र के अनुसार वस्तुओं के आयात-निर्यात पर राज्य की ओर से लगे बन्धन का उल्लंघन करना विरुद्धराज्यातिक्रम है।
1 पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - पृ. - 5
2 पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - 1/14- पृ. -5
उपासकदशांगटीका - आचार्य अभयदेवसूरि- 1/47 – पृ. - 43 • श्रावकप्रज्ञप्तिटीका - आचार्य हरिभद्र - गाथा- 268 - पृ. - 158
तत्त्वार्थ-सूत्र - आचार्य उमास्वाति-1/22 ' सम्यग्दर्शन से मोक्ष - साध्वी सम्यग्दर्शनाश्रीजी-7/207 – पृ. - 209
246
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org