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आचार्य हरिभद्र ने पूर्व-परम्परानुसार व्रतों का वर्णन करते हुए पंचाशक में लिखा है कि श्रावक स्तेयाणुव्रत को सुरक्षित रखने के लिए इन पाँच अतिचारों का सम्यक् प्रकार से त्याग करे। जिन अतिचारों से सावधान रहना है, उन अतिचारों का वर्णन आचार्य हरिभद्र ने प्रथम पंचाशक की चौदहवीं गाथा में प्रस्तुत किया है', जो जानने योग्य है, परन्तु अपनाने योग्य नहीं हैं। ये पाँच अतिचार निम्न हैं1. स्तेनाहृत 2. तस्करप्रयोग 3. राज्यविरुद्धव्यवहार 4. कूटतुला-कूटमान 5. प्रतिरूपक
व्यवहार।
उपासकदशांग में भी इसी प्रकार से पाँच अतिचारों का वर्णन है।' सागारधर्मामृत में तथा तत्त्वार्थ-सूत्र में पाँच अतिचार इस प्रकार प्रस्तुत किए गए हैं- 1. स्तेन-प्रयोग 2. स्तेन-अदत्तादान 3. विरुद्धराज्यातिक्रमण 4. हीनाधिक -मानोन्मान 5. प्रतिरूपक-व्यवहार।
इनमें एवं पंचाशक-प्रकरण में वर्णित अतिचारों में शाब्दिक अन्तर अवश्य है, किन्तु विशेष अर्थभेद नहीं है। स्तेनाहृत - हरिभद्र के पंचाशक-प्रकरण की टीका में प्रस्तुत अतिचार की व्याख्या करते हुए कहा गया है- चोरी से लाई हुई वस्तु को क्रय करना स्तेनाहृत है।'
उपासकदशांगटीका में नवांगी टीकाकार अभयदेवसूरि ने भी यही कहा है कि चोर द्वारा लाई हुई वस्तु स्वीकार करना स्तेनाहृत है।
____ श्रावकप्रज्ञप्ति-टीका में स्तेन का अर्थ चोर बताया गया है तथा चोरों द्वारा लाई गई वस्तुओं को लोभवश ग्रहण करने को स्तेनाहृत कहा है।'
'पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि-1/14 - पृ. -5
उपासकदशांग टीका - आचार्य अभयदेवसूरि- 1/47 – पृ. - 43 3 सागारधर्मामृत - पं. आशाधर - 4/50 - पृ. - 38 ' तत्त्वार्थ-सूत्र - आचार्य उमास्वाति-7/22
पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - 1/14 - पृ. -5 6 उपासकदशांगटीका - आचार्य अभयदेवसूरि- 1/14 - पृ. - 43 'श्रावकप्रज्ञप्तिटीका - आचार्य हरिभद्र – गाथा- 268 – पृ. - 158 8 तत्त्वार्थ-सूत्र - आचार्य उमास्वाति- 1/22
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