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में भी मृषावाद से विरत होने का निर्देश दिया है कि श्रावक को मिथ्योपदेश, असत्य-दोषारोपण, कूटलेखक्रिया, न्यास-अपहार और मन्त्रभेद (गुप्त बात प्रकट करना)इन पाँच अतिचारों से अवश्य बचने का प्रयास करते रहना चाहिए।' अदत्तादानव्रत- आचार्य हरिभद्र द्वारा रचित पंचाशक-प्रकरण मे तृतीय स्थूल-अदत्तादानविरमण-व्रत का वर्णन तेरहवीं गाथा में किया गया है। अदत्तादान का अर्थ है- नहीं दिया हुआ लेना, अर्थात् चोरी करना। चोरी का त्याग करना स्थूलअदत्तादानविरमण है। हरिभद्र के अनुसार दत्त का अर्थ है- दिया गया, अदत्त का तात्पर्य है- नहीं दिया गया। आदान का अर्थ है- ग्रहण करना। बिना दिए गए पदार्थ को ग्रहण करना अदत्तादान है, अर्थात् जिस पदार्थ का, जो स्वामी है, उसके द्वारा प्रदत्त को परिग्रहण करना दत्तादान है, और बिना अनुमति के लेना अदत्तादान है।
___ उपासकदशांगटीका में अदत्तादान को ही चोरी कहा गया है। यहाँ 'अदिण्णादाणं' शब्द आया है, जिसका सामान्य अर्थ बिना दी हुई वस्तु को लेने से ही है। आवश्यकसूत्र में भी अदत्तादान का ऐसा ही अर्थ किया गया है। दिगम्बराचार्य सोमदेवसूरि ने उपासकाध्ययन में सार्वजनिक जल, तृण आदि वस्तुओं के सिवाय अन्य सभी बिना दी हुई वस्तुओं को ग्रहण करना चोरी बताया है। चारित्रसार व धवला में ग्राम, वन, शून्यगृह और वीथी आदि में गिरे, पड़े या रखे हुए मणि, सुवर्ण तथा वस्त्र आदि के ग्रहण का विचार अदत्तादान माना है।
तत्त्वार्थ-सूत्र में आचार्य उमास्वाति ने 'अदत्तादानस्तेयम्' कहकर बिना दी हुई वस्तु को लेने को चोरी कहा है।'
आचार्य हरिभद्रसूरि - श्रावकप्रज्ञप्ति – पृ. - 154
'थूलादत्तादाणे विरई तं दुविहयो उ णिदुट्ठ।। 13
पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - 1/13 – पृ. - 5
सम्यग्दर्शन से मोक्ष - साध्वी सम्यग्दर्शनाश्रीजी – पृ. – 195 3 उपासकदशांगटीका-1/15 'आवश्यकसूत्र - मुनि घासीलाल जी महाराज - पृ. - 323 5 उपासकाध्ययन - सोमदेवसूरि - श्लोक- 364 ' (क) चारित्रसार – चामुण्डाचार्य – पृ. - 41 (ख) अदखस्य अदिण्णस्स आदाणं गहणं अदत्तादाणं - धवल पुराण- 12/281 7 तत्त्वार्थ-सूत्र - आ. उमास्वाति-7/10
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