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________________ आहार ग्रहण करना है। क्योंकि क्षुधा शान्त के सारे साधन केवल आहार संज्ञा से सम्बोधित करने पर ज्ञात हो जाता है कि यह खाद्य पदार्थ है, परन्तु खाद्य पदार्थों में स्वाद एवं गुणों की भिन्नता होने के कारण भेद किए गए हैं तथा प्रत्याख्यानों में भी भेद हैं, तो आहार में भी भेद हैं। प्रस्तुत प्रश्न का समाधान आचार्य हरिभद्र ने प्रत्याख्यानविधि-पंचाशक की पच्चीसवीं से ईकतीसवीं तक की गाथाओं में विस्तार से किया है। हम इसे इस प्रकार समझें जाति की दृष्टि से आहार एक होने पर भी प्रत्याख्यान की अपेक्षा से अशन, पान, खादिम और स्वादिम के भेद से आहार चार प्रकार का होता है। ज्ञान आदि की सिद्धि के लिए ये चार भेद जानना जरूरी हैं, अर्थात् आहार प्रत्याख्यान करते समय उसके अनुसार श्रद्धा एवं पालन आदि होता है। सर्वप्रथम आहार के चार भेदों का ज्ञान होता है। फिर तद्विषयक रूचि होती है, फिर द्विविध-आहार आदि भेद वाले प्रत्याख्यान को स्वीकार करने का भाव होता है, फिर उसका उपयुक्त पालन होता है, तत्पश्चात् आहार–सम्बन्धी विरति की वृद्धि होती है। ये सब आहार के भेदों का ज्ञान होने पर सम्भव होते हैं। यदि भेदों का वर्णन न किया जाए, तो उपर्युक्त ज्ञान, श्रद्धा आदि का होना सम्भव नहीं है। 1. अशन - चावल आदि अनाज, सत्तू, मूंग आदि दलहन, रबड़ी और तली हुई वस्तुएँ आदि पकवाने के अनेक प्रकार एवं दूध, दही, छाछ तथा सूरण आदि कन्द और सभी प्रकार की सब्जियों को अशन जानना चाहिए। 2. पान - माँड, यव आदि का धोया हुआ पानी, विविध प्रकार की मदिरा आदि, कुएँ का पानी आदि, ककड़ी, खजूर आदि के भीतर का जल तथा आम आदि फलों का धोया हुआ पानी इत्यादि सभी पान जानना चाहिए। 3. खादिम – भुने हुए चने, गेहूँ आदि अनाज, गुड़ आदि से संस्कृत पदार्थ तथा खजूर, नारियल, द्राक्षा, ककड़ी, आम, कटहल आदि अनेक प्रकार के फल जो को खादिम जानना चाहिए। । पंचाशक-प्रकरण- आचार्य हरिभद्रसूरि - 5/25 से 31 – पृ. . - 90,91 155 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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