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1. अन्नत्थणा 2. सहसा 3. महत्तरा और 4. सव्वसमाहिवत्तियागारेणं । विशिष्ट नियम या प्रतिज्ञा लेना अभिग्रह है । अभिग्रह में चार
अभिग्गह (अभिग्रह)
आगार हैं, जो निम्न हैं
1. अन्नत्थणा 2. सहसा 3. महत्तरा 4 सव्वसमाहि. ।
विशेष
अभिग्रह लेने पर मुनि के लिए एक आगार और है- चोलपट्टागारेणं । कई साधु उपाश्रय में निर्वस्त्र रहने का अभिग्रह भी लेते हैं। यदि अचानक किसी ग्रहस्थ के
आने पर चोलपट्ट पहनने की छूट होने पर ये पाँचवां आगार है।
घी आदि विगय का त्याग विगय प्रत्याख्यान कहलाता है । द्यी,
विगय ( विकृति ) दही, दूध आदि विगयों के प्रयोग से विचारों एवं मन में विकृति आने की संभावना होने के कारण इन विगयों का त्याग करने की विधि बतलाई गई है ।
विगय के दस भेद हैं, जो इस प्रकार हैं
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1.
मधु 8. मक्खन 9. मदिरा और 10. मांस ।
इन दस में अन्तिम की चार विगय सर्वथा त्याज्य है, क्योंकि ये अभक्ष्य हैं, और ये महाविगय भी है, अर्थात् ये मन, वाणी एवं तन को अधिक विकृत करते हैं । विगय के दो भेद हैं- द्रव और पिण्ड | मक्खन, तली हुई वस्तुएँ, माँस, दही, घी और गुड़- इन छह पिण्डविगय के त्याग में नौ आगार हैं।
अन्नत्थणा. सहसा. लेवा. गिह. उक्खित. पडुच्चमाक्खिएणं पारि. महत्तरा. सव्व. । आठ आगारों की परिभाषा पूर्व में दी गई है, यहां पडुच्चमाक्खिणं की परिभाषा समझेंगे ।
दही 2. दूध 3. घी 4 तेल 5. गुड़ (शकर) 6. तली हुई वस्तुएँ 7.
पडुच्चमक्खिणं (प्रतीत्यम्रक्षितेन) - अपेक्षाकृत चुपड़ा हुआ, अर्थात् नहीं के बराबर चुपड़ा हुआ हो, वह प्रतीत्यम्रक्षितेन है । आटे में घी या तेल डालकर बनाई हुई रोटी यदि खाए, तो विगय-प्रत्याख्यान भंग नहीं होता है। यदि वह अधिक मात्रा में डालकर बनाया हुआ या लगाया हुआ हो, ता नियम भंग होता है ।
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