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विशेष – जिनपूजा में ये लाभ हैं- भावशुद्धि, सम्यग्दर्शन गुणों की प्राप्ति, फलतः चारित्र की प्राप्ति से सम्पूर्ण जीवहिंसा का अभाव, अन्य जीवों को धर्म-प्राप्ति, परिणामतः मुक्ति । अतः निवारण के इच्छुक गृहस्थ को प्रमादरहित भाव से आगमसम्मत विधि
द्वारा भगवान् जिनेन्द्रदेव की पूजा अवश्य करना चाहिए ।
पूजा का महत्व
हुए कहा है
आनन्दघनजी ने सुविधिनाथ - स्तवन में पूजा के महत्व को बतलाते
इम पूजा बहु भेद सुणीने, सुखदायक शुभकरणी रे ।
भविक जीव करशे ते लेशे, आनन्दघन पद धरणी रे ।।
इस पूजा के अनेक भेद बताएँ हैं, और उसका फल भी बताया है । परमात्मा की पूजा शुभ क्रिया है। शुभक्रिया से पुण्यकर्म का बंध होता है, पापकर्मों का नाश होता है। जिनपूजा का स्थान महत्वपूर्ण है । जिनपूजा से परम ज्ञान की उपलब्धि होती है।
जिनपूजा में पुष्पपूजा करते हुए राजा कुमारपाल जन्मान्तर में 18 देशों का अधिपति हुआ।
नागकेतु पुष्पपूजा की भावना से पुण्य लेने गए हुए थे। मार्ग में सर्प के डंसने पर शुभभावनाओं में तल्लीन होने के कारण उन्होंने केवलज्ञान प्राप्त कर लिया । प्रभुपूजा कभी निष्फल नहीं जाती है, चाहे एक बार ही क्यों न करें- इसी बात को स्पष्ट करते हुए आचार्य हरिभद्र ने पूजाविधि - पंचाशक की सैंतालीसवीं गाथा में कहा है
जिस प्रकार महासमुद्र में फेंकी गई जल की एक बूंद का भी नाश नहीं होता है, उसी प्रकार जिनों के गुणरूपी समुद्रों में पूजा अक्षय ही हो जाती है।
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'पंचाशक - प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - 4/47 - पृ. 73
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