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________________ आचार्य हरिभद्र ने पूजाविधि-पंचाशक की उन्नीसवीं से बाईसवीं तक की गाथाओं में कही है जिनपूजा में सामान्य विधि (चौथी से अठारहवीं गाथा तक में) बतलाई गई है। विशेष विधि इस प्रकार है- पूजा इतने आदर से करना चाहिए कि चढ़ाई गई पूजा की सामग्री देखने में अच्छी लगे। जैसे, पुष्पादि इस तरह चढ़ाना चाहिए कि वे सुशोभित हो। इसी तरह, प्रत्येक वस्तु का अच्छी तरह उपयोग करके पूजन-सामग्री का दृश्य सुन्दर बनाना चाहिए। पूजा करते समय दूसरी कोई भी क्रिया नहीं करना चाहिए। वस्त्र से नासिका बांधकर पूजा करना चाहिए, जिससे दुर्गन्धयुक्त श्वास आदि प्रभु को न लगे। नासिका बांधने पर यदि असुविधा हो, तो नासिका बांधे बिना भी पूजा की जा सकती है। पूजा आदि करते समय भारीर को खुजलाना, नाक से श्लेश्म निकालना, विकथा करना आदि क्रियाओं का त्याग करना चाहिए। केवल पूजा में ही नहीं, अपितु लोक में भी जो सेवक अपने स्वामी राजादि का कार्य आदरपूर्वक करता है, उसे भी सेवा का फल मिलता है, क्योंकि राजा उस पर खुश होता है और जो अपने स्वामी का कार्य अनादरपूर्वक करता है, उसे सेवा का फल नहीं मिलता है, उल्टे स्वामी के नाराज होने के कारण शारीरिक और मानसिक कष्ट पाता है। जब एक छोटे से देश के स्वामी राजादि की आदरपूर्वक सेवा करने पर ही फल मिलता है, तो तीनों लोकों के स्वामी जिनेन्द्रदेव की पूज-स्तुति आदि भी अधिक आदर से की जाए, तो ही फल मिलेगा, इसीलिए बुद्धिजीवियों को जिनेन्द्रदेव की पूजा अत्यादरपूर्वक करना चाहिए। स्तुति-स्तोत्रद्वार- प्रभु परमात्मा का गुणगान, बहुमानपूर्वक स्तवना, स्तुति आदि उत्तम स्तुति एवं स्तोत्रों से करना चाहिए, अर्थात् वे स्तुति, स्तोत्र, गूढ़ सार अर्थों से परिपूर्ण होना चाहिए, जिससे उनको बोलते हुए, श्रवण करते हुए शुभभाव बने रहें। स्तुति स्तोत्रों के अर्थ का भी ज्ञान होना चाहिए, क्योंकि सूत्र के साथ अर्थ और भावपूर्ण बनता है, अशुभ कर्मों की निर्जरा करता है, फिर भी अर्थ का ज्ञान न हो, तो भी वे स्तुति, स्तोत्र 1 पंचाशक-प्रकरण- आचार्य हरिभद्रसूरि-4/19 से 22 – पृ. - 63 123 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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