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________________ कृतज्ञता ज्ञापन इस शोध-प्रबन्ध का आधारग्रन्थ हरिभद्र का पंचाशक प्रकरण है जो अन्तिम तीर्थकर भगवान महावीर की वाणी पर आधारित है। अतः मै सर्वप्रथम भगवान महावीर, उनकी आचार्य परम्परा और विशेष रूप से आचार्य हरिभद्र के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ, क्योंकि भगवान महावीर के वचनों से निसृत, आचार्य परम्परा से संरक्षित तथा आचार्य हरिभद्र के द्वारा ग्रंथित यह कृति मेरे शोध-विषय का आधार रही ____ मैं इसके संस्कृत टीकाकार अभयदेवसूरि, जिन्होंने इस गहन विषय को स्पष्ट किया है, के प्रति भी आभार प्रकट करती हूँ। यह मेरा सौभाग्य है कि उनकी ही खरतरगच्छीय परम्परा में मुझे दीक्षित होने का अवसर मिला। मैं पूज्य गुरूवर्या शशिप्रभा श्रीजी के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ, जिन्होंने मेरे जीवन में ज्ञानचेतना का विकास किया और मुझे ज्ञानोपासना के लिए प्रेरित किया। मैं अपनी गुरूभगिनियों विशेष रूप से सम्यग्दर्शनाश्रीजी, सम्यक्प्रभाश्रीजी के प्रति भी अपना आभार प्रकट करती हूँ, जिन्होंने प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर में अपने अध्ययनकाल में पूरी तरह से सहयोग प्रदान किया और मेरे अध्ययन में किसी भी प्रकार से व्यवधान उपस्थित नहीं होने दिया। मैं विशेष रूप से साध्वी श्री सौम्यगुणाश्रीजी एवं साध्वी मोक्षरत्नाश्रीजी की भी आभारी हूँ जिनकी कृतियाँ मेरे अध्ययन में विशेष रूप से सहयोगी रही हैं। विशेष रूप से मेरे षष्टम अध्याय का आधार तो श्री सौम्यगुणा श्रीजी की कृति जैन विधि विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास रही है। मैं विशेष आभारी हूँ डॉ. सागरमल जी जैन की, जिन्होंने न केवल इस शोधकार्य का मार्गदर्शन स्वीकार किया, अपितु अपनी इस वृद्धावस्था में भी मेरे शोध-प्रबन्ध के लेखन में प्रारम्भ से लेकर अन्त तक संशोधन का कार्य भी करते रहे तथा अपने द्वारा स्थापित प्राच्य विद्यापीठ में मेरे एवं मेरी गुरू भगिनियों के लिए सम्पूर्ण सुविधाएँ जुटाई। उनके सहयोग, संशोधन और मार्गदर्शन के बिना यह कार्य पूर्ण नहीं हो पाता। इस शोध-प्रबन्ध के अथ से लेकर इति तक सभी कार्यों में वे मेरे मार्गदर्शक एवं सहयोगी रहे हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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