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________________ बड़ी, खीचिया, अचार आदि। उपर्युक्त खाद्य-पदार्थ समयावधि के पूर्व ही किसी कारणवश खराब होते दिखाई दें तो अभक्ष्य मानकर उनका त्याग कर देना चाहिए। जैनदर्शन में जो अभक्ष्य की चर्चा की गई है, उसके पीछे केवल जीव-हिंसा का ही कारण नहीं है, अपितु शारीरिक-आरोग्यता, मानसिक-निरोगता और भावनाओं की शुद्धता का बने रहना इत्यादि कारण भी निहित हैं। जैसे कि बहुबीज वाली वनस्पतियों को अभक्ष्य मानने के पीछे कारण है कि बीज कठोर होता है, अतः सुपाच्य नहीं होता, इसी प्रकार अमर्यादित काल का भोजन भी कभी-कभी विषाक्त हो जाता है। बरसात में दही को अभक्ष्य की श्रेणी में माना गया है, इसके पीछे शरीर की अस्वस्थता का कारण ही प्रमुख है। बेमौसम की फल-सब्जियाँ, कई दिनों से कोल्डस्टोरेज में रखे गए फल-सब्जियाँ आदि अभक्ष्य हो जाते हैं। इस प्रकार के अभक्ष्य पदार्थों का सेवन करने पर शारीरिक, मानसिक एवं धार्मिक-दृष्टि से व्यक्ति का पतन होता है। इसके अतिरिक्त, बर्फ, आइस्क्रीम, तंदूरी रोटी, नान, बाजारू ठंडे पेय, फास्टफूड, चाऊमीग, मैगी, पिज्जा, सॉस, चटनी, बेकरी-उत्पाद, कृत्रिम रूप से पकाए गए फल, आलू, प्याज, लहसुन, साबुदाना, कटहल, बैंगन, फ्रीज में रखे खाद्य-पदार्थ अभक्ष्य की कोटि में आते हैं। फरमन्टेशन से तैयार किया गया भोजन डोसा, इडली, खमन-ढोकला, मिठाईयाँ तथा ऑक्सिटोसिन इंजेक्शन लगाकर निकाला गया दूध अभक्ष्य हो जाता है। कई पत्र-पत्रिकाओं में अंकुरित अनाज को पौष्टिक बताकर सेवन करने का प्रचार हो रहा है, पर अंकुरित अनाज भी मांसाहार की श्रेणी में होने से इसका त्याग करना चाहिए। - इसके अतिरिक्त, डॉ. नेमीचंदजी जैन की दृष्टि में आधुनिक युग में निम्न पदार्थ भी अभक्ष्य की कोटि में आते हैं, क्योंकि इन पदार्थों का निर्माण एवं सेवन स्वास्थ्य, सभ्यता, संस्कृति और धर्म के लिए हानिकारक है, नीचे निर्दिष्ट किए जा 53 श्रमणभारती समाचार-पत्र, - घोर हिंसा से बचाने हेतु --- (16 अगस्त 2010) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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