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(1 ) वट (बड़) वृक्ष के फल, (2) पारसपीपल और पीपल के फल, (3) पिलखण (4) कटुंबर ( 5 ) गूलर आदि पांच उदंबर फल, ( 6 ) मधु (शहद) (7) मदिरा ( 8 ) मांस ( 9 ) मक्खन (10) हिम (बर्फ) ( 11 ) विष (जहर) (12) ओला ( 13 ) सब प्रकार की मिट्टी ( 14 ) रात्रिभोजन ( 15 ) बहुबीज फल ( 16 ) अनंतकाय ( 17 ) संधान (अचार) (18) दही, छाछ मिश्रित द्विदल ( 19 ) बैंगन ( 20 ) अज्ञात फल ( 21 ) तुच्छ फल और ( 22 ) चलित
रस ।
भक्ष्य का ग्रहण एवं अभक्ष्य का त्याग क्यों ?
भक्षण करने योग्य पदार्थों को ग्रहण करना चाहिए और भक्षण नहीं करने योग्य अखाद्य-पदार्थों का त्याग करना चाहिए । गाय से प्राप्त दुग्ध शुद्ध है, अतः भक्ष्य है और उसका मांस अशुद्ध है, अतः अभक्ष्य है। ऐसी ही वस्तु - स्वभाव की विचित्रता है, जैसे मणिधर सर्प की मणि ग्रहण करने योग्य है और उसका विष मारक होने से विपत्ति के लिए होता है, अतः वह ग्रहण करने योग्य नहीं है। मांस और दूध के उत्पादक कारण समान होने पर भी मांस हेय है, जबकि विधिपूर्वक एवं अहिंसकवृत्ति से गृहीत दूध पेय है ।
विशेषतः, वेगेन-परम्परा में पाश्चात्य देश के लोग दूध को भी पशुजन्य होने के कारण अभक्ष्य मानते हैं और दूध के स्थान पर सोयाबीन के पाउडर से बने दूध का उपयोग करते हैं । जो गाय के दूध से बने दही, छाछ, मक्खन, घी किसी को भी ग्रहण नहीं करते, वे वेगेन कहलाते हैं ।
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मद्य, मांस, मधु आदि अभक्ष्य हैं, क्योंकि इन पदार्थों से शरीर में तामसिक प्रवृत्ति एवं मादकता बढ़ जाती है। 12 दूसरे ये हिंसाजन्य हैं । प्राणी इन्हें ग्रहण करने के पश्चात् अपना विवेक खो देते हैं और अमानवीय कृत्य भी कर बैठते हैं, क्योंकि इन पदार्थों के सेवन से उनकी विवेक - क्षमता क्षीण हो जाती है। जितने भी पेय
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मधु मद्य नवनीतं पिशितं च महाविकृतयस्ताः
वल्भयन्ते न व्रतिन तद्वर्णा जन्तवस्तत्र ।।
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पुरुषार्थ सिद्ध्युपाय, श्लोक - 71
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