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इच्छापूर्वक किया हुआ आहार आभोग - निवर्तित एवं अनिच्छापूर्वक किया हुआ आहार अनाभोग - निवर्तित कहलाता है 1
अनाभोग-निवर्तित आहार की प्रवृत्ति प्रतिसमय नरक के जीवों में उत्पन्न होती रहती है, किन्तु जो आभोग - निवर्तित (उपयोगपूर्वक किया हुआ) आहार है, उस आहार की अभिलाषा असंख्यात समय के अन्तर्मुहूर्त में उत्पन्न होती है। अनाभोग-निवर्तित आहार भवपर्यन्त प्रतिसमय निरन्तर होता रहता है। यह आहार ओजाहार आदि के रूप में होता है। आभोग - निवर्तित आहार की इच्छा असंख्यात समय-परिमाण अन्तर्मुहूर्त में उत्पन्न होती है। मैं आहार करूँ ? इस प्रकार की अभिलाषा एक अन्तर्मुहूर्त के अंदर पैदा हो जाती है। यही कारण है कि नारकों की आहार की इच्छा अन्तर्मुहूर्त की कही गई है। वे नारक जीव अनन्त - प्रदेशी पुद्गलों का आहार करते हैं । सामान्यतः, नारक जीव वर्ण की अपेक्षा से काले और नीले वर्ण वाले, रस की अपेक्षा से तिक्त और कटु रस वाले, गन्ध की अपेक्षा से दुर्गन्ध वाले, तथा स्पर्श की अपेक्षा से कर्कश, गुरु, शीत और रूक्ष स्पर्श वाले अशुभ द्रव्यों का आहार करते हैं। यह स्पष्ट है कि मिथ्यादृष्टि नारक जीव ही उक्त कृष्णवर्ण आदि द्रव्यों का आहार करते हैं, किन्तु जो नारक आगामी भव में तीर्थंकर आदि होने वाले हैं, वे ऐसे द्रव्यों का आहार नहीं करते हैं ।
भवनपति आदि देवों का आहार
असुरकुमार आदि भवनपति देवों का आहार ये वर्ण की अपेक्षा से पीत और श्वेत, गन्ध की अपेक्षा से सुरभि गन्ध वाला, रस की अपेक्षा से अम्ल और मधुर, स्पर्श की अपेक्षा से मृदु, लघु, स्निग्ध और उष्ण पुद्गलों का आहार करते हैं । स्तनितकुमार देवों तक के सभी देवों का आहार असुरकुमारों के समान ही जानना चाहिए । विशेष यह है कि असुरकुमार आदि देवों को बीच-बीच में एक-एक दिन छोड़कर आहार की अभिलाषा होती है। असुरकुमार त्रसनाड़ी में ही होते है, अतएव वे छहों दिशाओं से पुद्गलों का आहार करते हैं ।
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'प्रज्ञापनासूत्र 28 आहारपद, पृ. 102
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