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पुरुषार्थ -
शोक और निराशा को पुरुषार्थ के माध्यम से भी हटाने का प्रयास कर सकते हैं। मधुमक्खियाँ सतत् श्रम से ही मधु का भंडार भरती हैं, किसान श्रम करके अन्न का भंडार भरता है, यदि दोनों ही पुरुषार्थ न करें, तो कार्य में सफल नहीं हो सकते उसी प्रकार शोक असफलता से ही उत्पन्न होता है, पर जब पुरुषार्थ करेंगे, तो असफलता प्राप्त ही नहीं होगी और शोक का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।
प्रेक्षाध्यान से -
आचार्य महाप्रज्ञजी ने उदासी, शोक, चिन्ता से उभरने के लिए प्रेक्षाध्यान को करने के लिए प्रेरित किया है। वे कहते हैं -स्वयं की समस्या का समाधान स्वयं में खोजने की चेष्टा करना चाहिए। प्रेक्षाध्यान के माध्यम से हम एकाग्रता को साधने का अभ्यास करते हैं। एकाग्रता सध जाए, तो विचय-ध्यान करते चलें, उस पर एकाग्र होते चलें। आपको प्रतीत होगा कि समस्या का समाधान हो गया है और समस्या सुलझ गई है। ध्यान का मुख्य प्रयोजन सच्चाई को खोजना है। जब सच्चाई का पता लग गया, तो शोक और संताप सभी समाप्त हो जाएंगे।
संतुलित आहार -
वैज्ञानिक उदासी (शोक) से मुक्ति पाने के लिए पोषक आहार पर्याप्त मात्रा में ग्रहण करने को प्रेरित करते हैं। यदि पोषक आहार पर्याप्त मात्रा में होता है, तो व्यक्ति उदासी से छुटकारा पा लेता है। पोषक आहार के अभाव में उदासी तत्काल आ जाती है। जिस आहार में विटामिन्स और एमिनो एसिड का उचित संतुलन होता है, उसके सेवन से उदासी का एक हेतु समाप्त हो जाता है।
99 सोया मन जग जाए. आचार्य महाप्रज्ञ, पृ. 101
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