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दिन-प्रतिदिन का जीवन भी अस्तव्यस्त हो जाता है। विशाद के कारण व्यक्ति के सामाजिक एवं वैयक्तिक-जीवन में भी अनेक तरह की समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं।
वस्तुतः, मनोवैज्ञानिक ऐसा मानते हैं कि जब व्यक्ति विषाद की अवस्था में होता है, तो भूख, नींद एवं शारीरिक-वजन में कमी होती जाती है। व्यक्ति की क्रियाशक्ति कम हो जाती है, उसकी अपनी अभिरुचि {interest} खत्म हो जाती है तथा उसका किसी कार्य में मन नहीं लगता है। ऐसे व्यक्तियों में नींद की कमी, शारीरिक-वजन में कमी, थकान, स्पष्ट रूप से सोचने की क्षमता में कमी तथा अपने अयोग्य होने का भाव उत्पन्न हो जाता है, यहाँ तक कि आत्महत्या {sucide} की प्रवृत्ति आदि भी इसके कारण ही होती है।
विषाद अर्थात् उदासी एक विकार है। डिप्रेशन एक बड़ा रोग है। उदास व्यक्ति अपनी क्षमताओं का ठीक से उपयोग नहीं कर पाता है, उसकी शक्तियाँ मुरझा जाती है, क्षीण हो जाती हैं, सीमित हो जाती हैं, जबकि प्रसन्न रहने वाला व्यक्ति अपनी शक्तियों का सही उपयोग कर पाता है।
अतः, स्पष्ट है कि शोक और उदासी व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक शक्ति को कमजोर बना देती है।
शोक आर्तध्यान का ही एक रूप है।
जैनदर्शन में शोक को संज्ञा (मूलप्रवृत्ति) के रूप में, नोकषाय के रूप में और आर्तध्यान के रूप में परिभाषित किया गया है। वस्तुतः, शब्द-संरचना की दृष्टि से सब अलग-अलग प्रतीत होते हैं, परंतु मूल में सबका स्वरूप प्रायः समान ही है। शोक-संज्ञा और नोकषाय के रूप में शोक की चर्चा हम पूर्व में कर चुके हैं। यहाँ हम आर्तध्यान के रूप में शोक की चर्चा करेंगे।
76 आधुनिक असामान्य मनोविज्ञान, -अरूणकुमार सिंह, पृ. 444
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