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________________ नाम से अभिहित करते हैं, उनमें भी कोई एकरूपता नहीं पाई जाती है। हमारे शोध में हमने देखा कि जैनधर्म-दर्शन में संज्ञाओं का यह वर्गीकरण चतुर्विध वर्गीकरण, दशविध वर्गीकरण और षोड़शविध वर्गीकरण पाया जाता है। प्रथम जो चतुर्विध वर्गीकरण है, उसमें मुख्य रूप से जैविक (Biological) पक्ष को प्राथमिकता दी गई। दशविध वर्गीकरण और षोड़शविध वर्गीकरण में जैविक-पक्ष के साथ-साथ सामाजिक-पक्ष, मानसिक-पक्ष और आध्यात्मिक-पक्ष को भी स्थान मिला है। सामाजिक-पक्ष के रूप में ओघ और लोकसंज्ञा का रूप मिलता है, जबकि आध्यात्मिक-पक्ष के रूप में धर्मसंज्ञा को ही स्थान मिलता है। बौद्धधर्म-दर्शन में इन व्यवहार के मूलभूत प्रेरक-तत्त्वों के रूप में गंभीरता से विचार हुआ है और इन्हें चैतसिक-धर्म के रूप में विभाजित किया गया है। उसके कुशल, अकुशल और अव्यक्त –इन तीन रूपों के अलावा इनमें से प्रत्येक के भी अनेक प्रकार बताए गए हैं। लोभ, द्वेष और मोह -ये तीन अकुशल चित्त के प्रेरक हैं। जब वह अलोभ, अद्वेष और अमोह से प्रवृत्त होता है, तो कुशल चित्त कहा जाता है। अव्यक्त चित्त दो प्रकार का होता है - 1. विपाक-सहेतुक चित्त और, 2. क्रियासहेतुक चित्त। इन तीन सहेतुक चित्तों के बावन चैतसिक-धर्म (चित्त-अवस्थाएँ) माने गए हैं, जिनमें तेरह अन्य समान, चौदह अकुशल और पच्चीस कुशल होते हैं। जो चैतसिक कुशल, अकुशल और अव्यक्त सभी चित्तों में समान रूप से रहते हैं, वे अन्य समान कहे जाते हैं। तीन, छह, सात और आठ चैतसिक-धर्मों का भी उल्लेख है। जैनों की संज्ञा, बौद्धों के चैतसिक-धर्म, आधुनिक मनोविज्ञान की मूलप्रवृत्तियाँ और संवेग की अवधारणाओं में बहुत कुछ समानताएं हैं। जहाँ जैनदर्शन राग और द्वेष की चर्चा करता है, वहाँ बौद्धदर्शन भव-तृष्णा और विभव-तृष्णा का उल्लेख करता है। फ्रायड ने इन्हें जीवनवृत्ति (Eros) और मृत्युवृत्ति (Thenatos) कहा है। एक 62 अभिधम्मत्थसंगहो - चैत्तिसिक संग्रह विभाग, पृ. 10-11 63 जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन, भाग-1, डॉ. सागरमल जैन, पृ.464 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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