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________________ 50 पानी को यदि हम जलती हुई आग पर डाल दें, तो वह गर्म पानी आग को तो बुझा देगा, ऐसा क्यों ? क्योंकि जल का मूल स्वभाव शीतलता है, उष्णता तो अग्नि के संयोग से उत्पन्न हुई, जो पर के निमित्त से है, स्वभाव नहीं । गीता ̈ में कहा है - "स्वधर्म ही श्रेष्ठ है, परधर्म भयावह है ।" अर्थात् अपना धर्म वही है, जो अपना निज स्वभाव है, विभावता तो परद्रव्यों के कारण आती है, जो अधर्म है। कोई भी व्यक्ति चौबीसों घण्टे क्रोध की स्थिति में नहीं रह सकता, किन्तु शान्त रह सकता है, अतः मनुष्य के लिए क्रोध विधर्म है, अधर्म है और शान्ति स्वधर्म है । जब तक जीव संसार में है, इसकी प्रवृत्तियों में रंगा हुआ है, तब तक उस पर कर्मों के बन्धनों की कालिख चढ़ती रहती है, जिसका परिणाम यह होता है कि जीव के जो मूल गुण हैं, जो उसका स्वभाव (चेतना) है, वही मलिन हो जाता है। अपने में से मलिनता को कालिख को जिस क्षण वह निकालकर फेंक देता है, उस क्षण वह अपने शुद्ध निज-स्वभाव को प्राप्त कर लेता है। एक बार अपने इस शुद्ध स्वभाव को पा लेने के बाद फिर उसमें मलिनता नहीं आती, अतः आत्मा या चेतना का जो स्वभाव होगा, वही हमारा वास्तविक धर्म होगा। धर्म के स्वरूप को समझने के लिए 'चेतना' के स्वलक्षण को जानना होगा । चेतना क्या है ? इस प्रश्न का उत्तर भगवतीसूत्र" में भगवान् महावीर और गौतम के बीच हुए एक संवाद से मिलता है 460 - गौतम पूछते हैं, – “भगवान्! आत्मा क्या है ? और आत्मा का अर्थ या साध्य क्या है ?" महावीर उत्तर देते हैं " गौतम! आत्मा का स्वरूप 'समत्व' है और समत्व को प्राप्त कर लेना ही आत्मा का साध्य है ।" 50 स्वधर्मे निधनं श्रेय परधर्मो भयावहः 51 'भगवतीसूत्र - 1 / 9 यह बात न केवल दार्शनिक - दृष्टि से सत्य है, अपितु जीवशास्त्रीय और मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी सत्य है । जीवशास्त्र [ Biology } के अनुसार, जीवन का लक्षण है – आन्तरिक और बाह्य-संतुलन को बनाए रखना । फ्रायड नामक सुप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक का कथन है चैत्त - जीवन और स्नायुजीवन का स्वभाव यह है कि Jain Education International गीता, 3 / 35 - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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