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6. प्रेय - प्रिय वस्तु की प्राप्ति हेतु तीव्र भाव। 7. दोष – ईर्ष्याग्रस्त होकर परिग्रह-बहुलता की इच्छा। दूसरों को नीचा दिखाने के लिए परिग्रह का संचय कर अपने-आपको महान् बताने की इच्छा। 8. स्नेह – प्रिय वस्तु या व्यक्ति के विचार में एकाग्रता। 9. अनुराग - अत्यधिक स्नेहाधिक्यता रखना, अर्थात् वस्तु या व्यक्ति के प्रति अति लगाव रखना। 10. आशा - अविद्यमान पदार्थ की आकांक्षा। 11. इच्छा - परिग्रह-अभिलाषा। 12. मूर्छा - संग्रह में गाढ़ आसक्ति । 13. गृद्धि - परिग्रह-वृद्धि हेतु अति तृष्णा। . 14. साशता – प्रतिस्पर्धा । 15. प्रार्थना - धनप्राप्ति की अतीव कामना । 16. लालसा - अभीप्सित संयोग हेतु चाहना। 17. अविरति - परिग्रह-त्याग के भाव का अभाव । 18. तृष्णा – विषय-पिपासा, वस्तुओं की इच्छा। 19. विद्या – पूर्व संस्कारवश जिसका निरन्तर अनुभव हो। 20. जिह्वा – उत्तमोत्तम भोगोपभोग सामग्री के लिए जिह्वा लपलपाना, रसदार फल, मिष्ठान्न, सुन्दर परिधान, आभूषण आदि के लिए इच्छा करना।
उपर्युक्त भेद लोभ मनोभाव के हैं। जब भी किसी वस्तु या व्यक्ति आदि को प्राप्त करने की तीव्र इच्छा होती है और उसके लिए जीव जब उचित और अनुचित साधन-सामग्री का उपयोग करने का उद्यम करता है, वह लोभ है। लोभ की आगमानुसार रूप-भेद विवेचना से यह स्पष्ट होता है कि साधन-सामग्री के संग्रह
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