________________
369
मायावी अविश्वासपात्र होता है -
मायाचार से युक्त व्यक्ति मीठा बोलकर लोगों का विश्वास जीतते हैं, फिर पीठ में छुरा घोंप देते हैं। जैसे पहाड़ दूर से कितने सुन्दर दिखाई देते हैं, किन्तु निकट जाने पर बड़ी-बड़ी गुफाएँ, विशाल चट्टानें, कांटेदार सूखे पेड़, साँप, बिच्छू, सिंह, भालू आदि भयंकर वस्तुओं और हिंसक प्राणियों के दर्शन होते हैं, उसी प्रकार चाणक्य ने कहा है - "अधिक शिष्टाचार शंका के योग्य होता है।"47 पहले जो व्यक्ति दूर-दूर रहता था, सामने आने पर नमस्कार तक नहीं करता था, वह यदि चरण छूने में लगा रहता है, तो समझ लेना चाहिए कि अवश्य कोई बड़ा धोखा देने वाला है। नमस्कार-नमस्कार में अंतर होता है, सभी नमस्कार समान नहीं होते, क्योंकि धोखेबाज व्यक्ति दोगुना झुकता है।, जैसे -चीता, चोर और कमान।
नमन-नमन में फर्क है, सब समान मत मान।
दगाबाज दुगुना नमें, चीता, चोर, कमान।। माया का फैलाव सारे संसार में समाया हुआ है। अशुभाशय से सत्य को असत्य बताना, छल-कपट करना, अपने अकृत्य को अन्य पर आरोपित करना, तपस्वी न होते हुए भी अपने को तपस्वी बताना - यह सभी माया है। यह सत्य है कि माया कभी फलीभूत नहीं हो सकती है। दूसरों को धोखा देना स्वयं को बहुत बड़ा धोखा देना है, इसलिए जीवन के उत्थान के लिए हमारा जीवन सम्यक रूप से निश्छल और सरल होना चाहिए। हमारी प्रीति और कृत्य निःस्वार्थ होने चाहिए। जिस दिन यह सरलता और सहजता हमारे हृदय में आ जाएगी, उसी दिन से हमारा जीवन माया रहित होकर, जीवन में धर्म का आनंद बरसने लगेगा। इस आनंद को प्राप्त करने के लिए, माया पर विजय प्राप्त कैसे करें, इसकी चर्चा हम आगे करेगें।
47 अत्युपचार: शङिकतव्य, - चाणक्यनीति
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org