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________________ 329 स्थानांगसूत्र एवं समवायांगसूत्र में मद के आठ प्रकार बताए गए हैं - 1. जातिमद, 2. कुलमद, 3. रूपमद, 4. बलमद, 5. श्रुतमद, 6. तपमद, 7. लाभमद, 8.ऐश्वर्यमद! जातिमद : मूल में आत्मा की कोई जाति नहीं होती है। समाज में वर्ण-व्यवस्था (जातियाँ) कर्म के आधार पर निर्मित हुई हैं। ए जातियाँ चार हैं- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र । समाज में जाति के आधार पर लोग अपने को बड़ा समझते हैं। ब्राह्मण-जाति में उत्पन्न होने वाला श्रेष्ठ है, वहीं शूद्र जाति में उत्पन्न होना अश्रेष्ठ है -ऐसा भाव ही जातिमद है। वर्ण और जाति की व्यवस्था सिर्फ व्यवसाय के आधार पर हुई थी, न कि जाति के आधार पर। भगवान् ने भी कहा है - कर्म से ही व्यक्ति ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र होता है, अतः जाति का अभिमान छोड़ने योग्य है। हरिकेशचाण्डाल ने पूर्वजन्म में ब्राह्मण-जाति में जन्म लेकर जातिमद के कारण ऐसा कर्मसंचय किया कि वर्तमान भव में चाण्डाल (शूद्र) जाति में उत्पन्न हुआ। कुलमद : कुलमद, अर्थात् अच्छे खानदान में उत्पन्न होने का मद । अच्छे कुल में जन्म ले लेने से कोई व्यक्ति बड़ा नहीं हो जाता, बल्कि अपने सुकार्यों से बड़ा बनता है, जैसे हरिकेशी मुनि अपने सुकार्यों से ही महान् बने। जिस कुल में महान पुरुषों का जन्म होता है, वह कुल श्रेष्ठ कहलाता है। अज्ञान के कारण ही व्यक्ति कुल का मद करता है। 19 अट्ठ मयट्ठाणा पण्णत्ता, तं जहा - जातिमए, कुलमए, बलमए, रूवमए, तवमए, सुतमए, लाभमए, इस्सरियमए - स्थानांगसूत्र 8/21 20 समवायांगसूत्र, 8/1 21 योगशास्त्र, 4/13 22 कम्मुणा बंभणो होइ, कम्मुणा होइ खत्तिओ। वइसो कम्मुणा होइ, सुद्दो हवइ कम्मुणा।। - उत्तराध्ययनसूत्र 25/33 23 उत्तराध्ययनसूत्र - 12/1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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