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________________ 310 उठाकर फेंक देते हैं। अतः, उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि क्रोध-भाव एक है, किन्तु उसके रूप, परिणतियाँ विभिन्न दिखाई देती हैं। क्रोध के दुष्परिणाम - - भगवतीसूत्र में भगवान् से प्रश्न किया गया कि जीव किस प्रकार गुरुत्व या भारीपन को प्राप्त होता है ? तो प्रभु ने उत्तर दिया -पापों के सेवन से ही जीव गुरुत्व या भारीपन को प्राप्त करता है एवं नीच गति में जाने योग्य कर्मों का उपार्जन करता है। पापों का सेवन करने से ही जीव संसार को बढ़ाते हैं एवं बारम्बार भव-भ्रमण करते हैं। क्रोध का भी अठारह पापों में से छठवां स्थान होने से यह भी आत्मा को भारी बनाता है एवं इसका त्याग करने से जीव हल्का होता है। दशवैकालिकसूत्र" में कहा है - जब क्रोध उत्पन्न होता है, तो प्रीति नष्ट हो जाती है। जब प्रीति नष्ट होती है, तो क्रोध के दुष्परिणाम उत्पन्न होने लगते हैं। क्रोध के लिए कहा है – मुनि कुछ कम एक करोड़ पूर्व काल में जितना चारित्र उपार्जित करता है, उस समस्त चारित्र को वह क्रोधयुक्त बनकर एक मुहूर्त मात्र में नष्ट कर देता है। क्रोधी जमी हुई और बनी हुई बात को क्षणभर में बिगाड़ देता है। क्रोध के फलस्वरूप जीव कुरूप, सत्वहीन, अपयश का भागी और अनन्त जन्म-मरण करने वाला बन जाता है, इसलिए क्रोध हलाहल विष के समान है -ऐसा जानकर सन्त कदापि क्रोध से संतप्त नहीं होते हैं। वे सदैव शान्त एवं शीतल रहते हैं और दूसरों को भी शांत-शीतल बनाते हैं। उपासकाध्ययन में कहा है - "क्रोध से जिसका मन चलायमान हो गया है, वह सभी बुरे कार्यों को करता है। कोई भी पाप-कार्य शेष नहीं रह जाता। क्रोधी है । जीवा गरूयत्तं हवमागंच्छति ? गोयमा पाणाडवाएणं मसावाएणं आदिण्णादाणेणं मेहणेणं परिग्गहेणं कोह-माण माया लोभ - मिच्छदंसणसल्लेणं एवं खलु गोयमा जीव गरूयतं हव्वमागच्छति।। - भगवतीसूत्र, 1 शतक, 9 उद्देश्क, सूत्र-384 66 सव्वं पाणाइवायं ....... सव्वं कोहं माणं माय लोहे च राग दोसे य। - प्रवचनसारोद्धार, द्वार 237/गा. 1351-1353 67 कोहो पीइं पणासेइ ........... - दशवैकालिकसूत्र 8/27 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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