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________________ 306 फड़फड़ाना, नथुने फूलना, जिह्वा लड़खड़ाना, वाक्य-व्यवस्था स्खलित होना, शरीर असन्तुलित होना इत्यादि। भावक्रोध क्रोध की मानसिक अवस्था है। क्रोध का अनुभूत्यात्मक पक्ष भाव क्रोध है, जबकि क्रोध का अभिव्यक्त्यात्मक या शरीरात्मक-पक्ष द्रव्य-क्रोध है। क्रोध के विभिन्न रूप - समवायांगसूत्र एवं भगवतीसूत्र में क्रोध के दस रूप या समानार्थक नाम प्राप्त होते हैं - 1. क्रोध, 2. कोप, 3. रोष, 4. दोष, 5. अक्षमा, 6. संज्वलन, 7. कलह, 8.चाणिक्य, 9. मंडन, 10. विवाद। कसायपाहुड4 में भी क्रोध के दस रूपों का वर्णन है, जिसमें 'चाण्डिक्य' एवं 'मंडन' के स्थान पर 'वृद्धि' एवं 'झंझा' शब्द उपलब्ध होते हैं। 1. क्रोध - आवेग की उत्तेजनात्मक अवस्था क्रोध है। 2. कोप - क्रोध से उत्पन्न स्वभाव की चंचलता कोप है। कोप शब्द संस्कृत में 'कुप्' धातु से भाव अर्थ में 'घञ्' प्रत्यय जुड़कर 'कोप' शब्द की सिद्धि होती है। अभिधानराजेन्द्रकोश में कोप को कामाग्नि से उत्पन्न होने वाली चित्तवृत्ति बताया गई है। यह चित्तवृत्ति प्रणय और ईर्ष्या से उत्पन्न होती है। 'साहित्यदर्पण' के अनुसार, प्रेम की कुटिल गति से जो अकारण क्रुद्ध स्थिति होती है, वह कोप है। 'भगवतीवृत्ति' 52 तं जहा कोहे कोवे रोसे दोसे अखमा संजलणे, - समवायांगसूत्र 52/1 9 भगवतीसूत्र, श. 12, उ 5. सू. 2 " कसायपाहुड चू, अ 9, गा. 86 का अनुवाद 55 अभिधानराजेन्द्रकोश, भाग 7, पृ. 106 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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