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________________ बौद्धदर्शन में क्रोध के तीन प्रकार 7 बौद्धदर्शन में भी क्रोध को लेकर व्यक्तियों के तीन प्रकार माने गए हैं 1. वे व्यक्ति, जिनका क्रोध पर्वत पर खींची हुई रेखा के समान चिरस्थायी होता है 2. वे व्यक्ति, जिनका क्रोध पृथ्वी पर खींची रेखा के समान अल्प - स्थायी होता है । 3. वे व्यक्ति, जिनका क्रोध पानी पर खींची रेखा के समान अस्थायी होता है | 38 क्रोध की चार अवस्थाएं स्थानांगसूत्र” और प्रज्ञापनासूत्र में क्रोध की चार अवस्थाओं का उल्लेख है(1) आभोगनिवर्तित, (2) अनाभोगनिवर्तित, (3) उपशान्त, (4) अनुपशान्त 1. आभोगनिवर्तित - क्रोध - - स्थानांगसूत्र के वृत्तिकार अभयदेवसूरि ने आभोग का अर्थ ज्ञान किया है । 11 जो मनुष्य क्रोध के विपाक या दुष्परिणामों को जानते हुए भी क्रोध करता है उसका क्रोध आभोगनिवर्तित-क्रोध कहलाता है। — आचार्य मलयगिरि ने स्पष्ट करते हुए कहा है 12 क्रोध न आने पर भी अपराधी को सबक देने के लिए क्रोधंपूर्ण मुद्रां बनाना आभोगनिवर्तित-क्रोध है, जैसेबच्चे को भयभीत करने के लिए माँ क्रोध का अभिनय करती है । 38 301 37 जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शनों पर तुलनात्मक अध्ययन, भाग-1, पृ. 501, डॉ.सागरमल जैन अंगुत्तरनिकाय, 3 / 130 39 स्थानांगसूत्र 4/ उ 1/ सू. 88 40 चउव्विहे कोहे पण्णते, तं जहा - 1. आभोगणिव्वत्तिए, 2. अणाभोगणिव्वतिए, 3. उवसंते, 4. अणुवसंते। - प्रज्ञापनासूत्र, पद 14, सू 962-963 41 अभोगो ज्ञानं तेन निवर्तितो यज्जानम् कोपविपाकादि रूष्यति । - स्थानांगवृत्ति, पत्र 182 प्रज्ञापना पद 14, मलयगिरिवृत्ति पत्र 291. 42 Jain Education International 1 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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