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के पास कोई वस्तु ले जाओ, यदि वह व्यक्ति उस वस्तु को स्वीकार न करे, तो वह वस्तु किसकी रहेगी?" उस क्रुद्ध व्यक्ति ने झुंझलाकर कहा; - "वह तो मरे पास ही रहेगी।" महात्मा बुद्ध ने बड़ी शान्ति से उत्तर दिया – “भद्र ! तुम्हारे द्वारा दी जाने वाली गालियाँ मैं स्वीकार नहीं करता हूँ, अतः वे तुम्हारे पास ही रहेंगी ।" कहते हैं शाप (आक्रोश-गाली) देने वाले के पास ही वापस लौट जाता है । बुद्ध ही नहीं, समस्त महापुरुषों ने क्षमा, समता, सहिष्णुता को अक्रोध की स्थिति कहा है। भगवान् महावीर ने साधना-काल में संगम के द्वारा दिए गए उपसर्गों, गोपालक द्वारा कानों में कीले डालने जैसे भयंकर कष्टों और अन्य अनेक कठोर परीषहों को भी समता एवं शान्त-भाव से सहन किया। कभी भी उन्होंने अपने शान्त स्वभाव को नहीं छोड़ा, सदैव करुणा और क्षमा भावों में रमण किया ।
भारतीय मनोविज्ञान में क्रोध को संवेग { Emption } कहा गया है। संवेग शब्द का अर्थ है – उत्तेजित करना {To Excite } होता है। इस शाब्दिक अर्थ को ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि संवेग व्यक्ति की उत्तेजित अवस्था का ही दूसरा नाम है। इसी अर्थ में मनोवैज्ञानिक गेल्डार्ड 17 {Geldard, 1963]ने कहा है —“संवेग क्रियाओं का उत्तेजक है ।" या "संवेग एक जटिल भाव की अवस्था होती है जिसमें कुछ खास-खास शारीरिक एवं ग्रन्थीय - क्रियाएं होती हैं। 18 क्रोध { Angry }, भय {Fear }, खुशी {Happiness } हमारे जीवन के प्रमुख संवेगों में से हैं। 19
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आधुनिक मनोविज्ञान की दृष्टि में संवेद उत्पन्न होने की स्थिति में अनेक शारीरिक परिवर्तन घटित होते हैं । भय, क्रोधावस्था में थाइराइड ग्लैण्ड [गवग्रन्थि } समुचित कार्य नहीं करती, जिससे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। 20 स्वचालित तन्त्रिका-तन्त्र का अनुकम्पी - त - तन्त्र क्रोधावेश में हृदयगति, रक्त प्रवाह तथा नाड़ी की
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' आधुनिक सामान्य मनोविज्ञान, अरुणकुमार सिंह, आशीषकुमार सिंह, पृ. 413
'शारीरिक-मनोविज्ञान, ओझा एवं भार्गव, पृ. 214
17 Emotions are inciters to action" - Geldard: Fundamentals of psychology, 1963, P.33
18 "Emotion is a complete feeling state accompanied by characteristic motor or glandular activities"
- English & English: A comprehensive dictionary Psychological and psychoanalytic terms, 1958, P. 176
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