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________________ 278 की माता चौदह स्वप्न देखती है। उसमें एक स्वप्न लक्ष्मी का होता है तथा धन की देवी लक्ष्मी का स्वप्न, कुल में धन की वृद्धि का सूचक माना गया है।108 साथ ही जैनधर्म में श्रमणधर्म के साथ-साथ जो श्रावकधर्म की भी व्याख्या है और श्रावक के लिए तो धन का अर्जन एवं संचय आवश्यक है। जैनधर्म में अपरिग्रहवाद के साथ-साथ श्रावक के लिए परिग्रह-परिमाण का सिद्धान्त भी प्रस्तुत किया गया है। इससे प्रतिफलित होता है कि सामाजिक जीवन में धन की आवश्यकता को स्वीकार किया हैं इस दृष्टि से जैनधर्म में जहाँ एक ओर पंचमहाव्रतधारी, गृहत्यागी, अपरिग्रही श्रमण वर्ग के लिए पूर्णतया परिग्रह त्याग की व्यवस्था है, वहीं दूसरी ओर घर-परिवार में रहकर भी मर्यादित प्रवृत्ति करनेवाले अणुव्रतधारी श्रावक के लिए परिग्रह-मर्यादा की भी व्यवस्था है। जैन साहित्य में आध्यात्मिक चर्चा के साथ-साथ सामाजिक व्यवस्था के संदर्भ में अर्थ के विषय में जो कुछ उल्लेख प्राप्त होते हैं, उनसे ज्ञात होता है कि श्रेणिक का पुत्र अभयकुमार अर्थशास्त्र का ज्ञाता था। प्रश्नव्याकरणसूत्र में इस बात का उल्लेख है कि इस काल में 'अत्थसत्थ' अर्थात् अर्थशास्त्र विषयक ग्रन्थ लिखे जाते थे।10 जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति से यह ज्ञात होता है कि भरत का सेनापति सुषेण अर्थशास्त्र और नीतिशास्त्र में चतुर था।11 जैनपरम्परा में प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव को अर्थव्यवस्था का संस्थापक माना गया है कि ऋषभदेव ने अपने पुत्र भरत चक्रवर्ती के लिए अर्थशास्त्र का निर्माण किया था। 12 नन्दीसूत्र में कहा गया है कि विनय से प्राप्त बुद्धि से सम्पन्न मनुष्य अर्थशास्त्र तथा अन्य लौकिक शास्त्रों में दक्ष हो जाते हैं।113 108 कल्पसूत्र-पत्र-3 10° ज्ञाताधर्मकथा – 1/16 - (अंगसुत्ताणि, लाडनूं, खंड-3, पृ – 4) 110 प्रश्नव्याकरण - 1/5 _ - (अंगसुत्ताणि, लाडनूं, खंड-3, पृ. – 680) I" जम्बुद्वीपप्रज्ञप्ति – 3/77 - (उपंगसुत्ताणि, लाडनूं, खंड-2, पृ. 426) 12 आदिपुराण - 16/119 - (उद्धत् - प्राचीन जैन साहित्य में आर्थिक जीवन, पृ. 9) 13 नंदीसूत्र – सूत्र 38/गाथा 6 – (नवसुत्ताणि, लाडनूं, पृ 259) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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