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________________ 276 ट्रस्टीशिप के सिद्धांत में आर्थिक विषमता मिटाने का प्रयत्न बलपूर्वक हिंसा के आधार पर नहीं, विचार–परिवर्तन और हृदय-परिवर्तन के आधार पर किया जाता है। 102 अतः ट्रस्टीशिप के विचार का प्रचार ही सामाजिक आर्थिक विषमता को दूर कर सकता है। गांधी यह मानते हैं कि बिना हृदय-परिवर्तन और विचार–परिवर्तन के कानून के द्वारा भी सच्चा समाजवाद नहीं ला सकते हैं। अतः सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण बात ट्रस्टीशिप के पक्ष में जनमत तैयार करने का है। ट्रस्टीशिप सिद्धान्त के माध्यम से गांधी जी समाज को एक परिवार के रूप में देखते हैं। परिवार में हर व्यक्ति की क्षमता एक समान नहीं रहती। अतः हर व्यक्ति एक समान उत्पादन नहीं कर सकता। परन्तु जो कुछ वह उत्पादन करता है, उसका एक ही मालिक उस परिवार का मुखिया है जो उस संपत्ति का उपयोग समस्त परिवार के लिए करता है। ठीक उसी प्रकार समाज में भी शक्ति की विषमता के कारण उत्पादन की विषमता होगी। इसलिए व्यक्ति को अपनी शक्ति तथा मेघा के अनुकूल करोड़ों के उपार्जन का अधिकार है पर स्वामित्व समाज का रहेगा। समता का अर्थ अधिक से अधिक समानता है। इसीलिए गांधी निम्नतम पारिश्रमिक और उच्चतम आय को निर्धारित करना चाहते थे तथा समय-समय उसे बदलकर धीरे-धीरे विषमता कम करना चाहते थे। 103. विनोबा के अनुसार ट्रस्टीशिप-सिद्धांत का अभिप्राय है - शरीर, बुद्धि और संपत्ति तीनों में से जो भी प्राप्त हो उसे सबके हित में लगाना।104 किसी भी परिस्थिति में यह अपरिग्रह का उत्तम उपाय है।105 यद्यपि ट्रस्टीशिप के सिद्धान्त के पीछे जो अमूर्छा या अनासक्ति का बीजमंत्र है, वह जैनाचार-दर्शन और गीता में पहले से ही मौजूद था। जैनदर्शन ने परिग्रह की परिभाषा करते हुए यही कहा था कि वास्तविक परिग्रह तो मूर्छा या आसक्ति 102 Pyarelal, Towards New Horizons, PP 90-91 103 Harijan, 25/10/52, P.301 104 भावे, विनोबा, सर्वोदय और स्वराज्य शास्त्रं, पृ. 134 105 वही, पृ. 133 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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