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संतोषी मनोवृत्ति वालों को प्राप्त होता है, वह सुख इधर-उधर धनप्राप्ति हेतु दौड़ने वालों को नहीं।
संसार का कोई भी धर्म-दर्शन परिग्रह को स्वर्ग या मोक्ष का कारण नहीं मानता है। सभी धर्म एक स्वर में उसे हेय घोषित करते हैं। आज अपरिग्रह की जीवन और जगत में अति आवश्यकता है। अर्थ-तृष्णा की आग में मानव-जीवन भस्म न हो जाय, जीवनचक्र अर्थ परिग्रह के इर्द-गिर्द ही न घूमता रहे और जीवन का उच्चतम लक्ष्य ममत्व के अंधकार में विलीन न हो जाय। इसके लिए अपरिग्रह की वृत्ति जीवन में आनी चाहिए। क्योंकि "आवश्यकता से अधिक एवं अनुपयोगी उपकरण (सामग्री) अधिकरण अर्थात् बन्धन के हेतु हैं।"97 धन का सीमांकन स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए अनिवार्य है। यदि असंचय की वृत्ति जीवन में आए तो समाज की सारी विषमताएं स्वतः समाप्त हो जावेगी। इस प्रकार निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि अपरिग्रहवाद आधुनिक युग की ज्वलन्त समस्याओं का सुन्दर समाधान है। इससे व्यक्ति का जीवन उच्च और प्रशस्त बनता है और साथ ही समाज व देश की समस्याओं का समाधान भी सरलता से हो जाता है।
परिग्रहवृत्ति के विजय के संबंध में गांधी जी का ट्रस्टीशिप का सिद्धान्त -
अहिंसक-राज्य की धारणा के साथ समाज की नवीन आर्थिक–संरचना के संबंध में गांधी जी का "ट्रस्टीशिप सिद्धांत विशेष महत्त्वपूर्ण है। यह सिद्धान्त आर्थिक वितरण के प्रश्न पर नैतिक और अहिंसक समाधान का एक प्रयास है। वर्तमान समाज की आर्थिक व्यवस्था के संबंध में मुख्य रूप से दो विचार प्रचलित हैं - (1)पूंजीवादी विचार, (2) समाजवादी विचार ।
% संतोषामृततृप्तानां यत्सुखं शान्तचेतसाम्।
कुतस्तद्धनबुब्धानामेतश्चेतश्च धावताम् ।। - अमर भये, ना मरेगें, पृ. 14 97 अतिरेगं अहिगरण -- ओघनियुक्ति – 741
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