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________________ 253 होते हैं। धर्मकार्य के लिए भी परिग्रह की इच्छा करना उचित नहीं है। पैर को कीचड़ में डालकर बाद में उसे धोने के बजाय पहले ही कीचड़ का स्पर्श न करना ही अच्छा है। क्योंकि कोई व्यक्ति स्वर्णमणि रत्नमय सोपानों और हजारों खंभेवाला तथा स्वर्णमय भूमितलयुक्त जिनमन्दिर बनवाता है, उससे, अर्थात् पुण्यबंध के कार्य से भी अधिक फल तप-संयम या व्रताचरण का होता है। संबोधसत्तरि में भी इसी बात की पुष्टि की गई है। परिग्रह या संचयवृत्ति के दुष्परिणाम निम्न हैं - 1. परिग्रह हिंसा का कारण होता है। 2. परिग्रह दुःख, असंतोष और बंध का कारण होता है। 3. संचयवृत्ति एक सामाजिक अपराध है। 4. वर्ग-संघर्ष का कारण परिग्रह है। 5. देशों में युद्ध का कारण भी परिग्रह है। 6. परिग्रह के कारण से भोगवृत्ति को बढ़ावा मिलता है। 7. गरीबी की खाई चौड़ी हो जाती है। 8. विज्ञापनों के माध्यम से गलत जानकारी देकर सम्पत्ति-अर्जन की प्रवृत्ति बलवती होती है। 1. परिग्रह हिंसा का कारण - केवल हत्या या रक्तपात करना ही हिंसा नहीं है, परिग्रह भी हिंसा ही है, क्योंकि हिंसा के बिना परिग्रह करना असंभव है। संग्रह के द्वारा दूसरों के हितों का हनन होता है और इस रूप में परिग्रह भी हिंसा ही है। आचार्य शंकर ने कहा 60 त्रसरेणुसमोऽप्यत्र न गुणः कोऽपि विद्यते दोषास्तु पर्वतस्थूलाः प्रादुःष्यन्ति परिग्रहे - योगशास्त्र- 2/108 6 आरंभपूर्वको परिग्रहः । - सूत्रकृतांगचूर्णि- 1/2/2 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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