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एकाग्र करने के लिए ब्रह्मचारी की निद्रा नियमित होना चाहिए। देर रात्रि तक जागने से और अनियमित रुप से नींद लेने से शरीर का सन्तुलन टूटता जाता है ।
वास्तव में तो, रात्रि के प्रथम प्रहर के बाद सो ही जाना चाहिए और सूर्योदय के दो मुहूर्त पूर्व, अर्थात् ब्राह्ममुहूर्त में निद्रा का त्याग कर देना चाहिए। कहा हैप्रथम प्रहर में सब कोई जागे, दूसरे प्रहर में भोगी । तीसरे प्रहर में तस्कर जागे, चौथे प्रहर में योगी ।।
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अपनी भावशुद्धि का परमात्मा के साथ अनुसंधान करने के लिए रात्रि का अंतिम प्रहर अत्यन्त श्रेष्ठ है, अर्थात् ब्राह्ममुहूर्त में जगकर परमात्मा के साथ सम्बन्ध जोड़ने का प्रयास करना चाहिए । जब परमात्मा में मन लगेगा, तो वासनाओं पर नियंत्रण हो जाएगा ।
9. शारीरिक - आवेग को नहीं रोकें.
10. अशुभ वातावरण से दूर रहें
मल-मूत्र आदि जो शारीरिक - आवेग हैं उन्हें रोकने का प्रयास नहीं करना चाहिए। उन्हें रोकने से नुकसान होता है ।
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नाटक, नृत्य, सिनेमा, टीवी, वीडियो तथा अश्लील साहित्य आदि से एकदम बचकर रहें। चूंकि ये विषय-वासनाओं को बढ़ाने का काम करते हैं, इसलिए वासनाओं को जाग्रत करने वाले निमित्तों का भी त्याग करना चाहिए ।
11. शारीरिक श्रृंगार न करें -
ब्रह्मचारी का जीवन अत्यन्त सादगीपूर्ण होना चाहिए। तेल, इत्र, आदि सौंदर्य-प्रसाधनों के प्रयोग से काम - विकार उत्तेजित हो जाते हैं, अतः ब्रह्मचर्य के साधक को शरीर का श्रृंगार, भड़कीले - अश्लील वस्त्र, वर्त्तमान युग में प्रचलित उपभोग की वस्तुएं, जैसे फोन, मोबाईल, कम्प्यूटर, नेट, टीवी, संगीत आदि का त्याग करना चाहिए ।
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