SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 220
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 195 जैन परम्परा में 'ब्रह्मचर्य' शब्द व्यापक अर्थ को लिए हुए है। आचारांग का अपर नाम भी 'ब्रह्मचर्याध्ययन 133 है। ब्रह्मचर्य-अध्ययन में प्रवचन का सार है और मोक्ष का उपाय प्रतिपादित है। मोक्ष-प्राप्ति के लिए जितने भी आवश्यक सद्गुण और आचरण करने योग्य बातें हैं, वे सभी ब्रह्मचर्य में आ गईं।134 ब्रह्मचर्य में सारे मूलगुणों व उत्तरगुणों का समावेश है।35 आचार्य भद्रबाहुजी का मन्तव्य है कि भाव-ब्रह्म दो प्रकार का है – एक, श्रमण का 'बस्ती संयम' और द्वितीय, श्रमण का 'सम्पूर्ण संयम'। श्रमणधर्म ग्रहण करते समय मुमुक्षु साधक महाव्रतों को स्वीकार करता है, उसमें चतुर्थ महाव्रत ब्रह्मचर्य है। वह देव-सम्बन्धी, मनुष्य-सम्बन्धी या तिर्यंच-सम्बन्धी,138 सभी प्रकार के मैथुन का परित्याग करता है। मन, वचन और काया से न स्वयं मैथुन का सेवन करता है, न दूसरों से करवाता है, न मैथुन-सेवन करने वालों का अनुमोदन करता है। आचार्य अकलंक 139 ने अपना स्वतन्त्र चिन्तन प्रस्तुत करते हुए कहा हैव्यक्ति के द्वारा स्वयं के कामांग आदि का संस्पर्श भी अब्रह्म-सेवन या मैथुन ही है, क्योंकि उस संस्पर्श से भी कामरुपी पिशाच से चित्त-विकलन प्रारम्भ हो जाता है, अतः हस्त-कर्म आदि भी मैथुन कहलाता है। यहाँ तक कहा गया है कि पुरुष-पुरुष या स्त्री-स्त्री के बीच जो अनिष्ट चेष्टाएँ हैं, वे भी अब्रह्म हैं। साधक के लिए उस अब्रह्मचर्य से छुटकारा पाना आवश्यक है। ब्रह्मचर्य धर्म ध्रुव है, नित्य है, शाश्वत है, जिनदेशित है। पहले भी प्रस्तुत धर्म का पालन कर अनेक जीव सिद्ध हुए हैं, अभी 133 आचारांगनियुक्ति, गाथा-11 134 वही, गाथा 30 135 वही गाथा 30 की वृत्ति 136 वही गाथा 28 137 क) दशवैकालिकसूत्र - 4/4 ख) आचारांग श्रुतस्कंध – 2,15 138 क) दशवैकालिकसूत्र 4/4 ख) समवायांगसूत्र - 5 139 तत्त्वार्थवार्तिक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy