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________________ 185 कामवासनाओं का दमन और निरसन, ब्रह्मचर्य के माध्यम से - लालटेन की लौ से प्रकाश होता है, परन्तु काँच की हण्डी यदि धुएँ से काली हो चुकी हो, तो लौ को आप कितनी भी तेज कर दें, उससे वस्तुएँ साफ-साफ नहीं दिखाई देती। इसी प्रकार, आत्मा में ज्ञान की लौ है, अनन्त प्रकाश है, परन्तु मन पर विषय-वासनाओं के धुएँ रुपी आवरण हो, तो सत्य का दर्शन नहीं हो सकता। मन की निर्मलता के लिए तन, की शरीर की निर्मलता/स्वस्थता अत्यावश्यक है। किसी अंग्रेजी चिन्तक ने ठीक ही कहा है - "Sound mind in sound body" सबल शरीर में ही सबल मन रहता है। सुख के सैकड़ों साधन हों, किन्तु यदि शरीर स्वस्थ नहीं है, तो उन साधनों का कोई मूल्य नहीं, कोई आनन्द नहीं। जीवन का सच्चा सुख, सच्चा आनन्द स्वस्थता है, अर्थात् स्व में अवस्थिति है। यह तभी सम्भव है, जब विषयों की ओर नहीं भागें। तन की स्वस्थता का आधार भी इन्द्रियों का संयम, ब्रह्मचर्य एवं सदाचार का पालन ही है। ब्रह्मचर्य ही तन और मन की स्वस्थता का आधार है। महापुरुषों ने कहा है - ब्रह्मचर्य जीवन है, वासना मृत्यु है। ब्रह्मचर्य अमृत है, वासना विष है। ब्रह्मचर्य अनन्त शान्ति है, वासना अशान्ति है। ब्रह्मचर्य शुद्ध ज्योति है, वासना घना अन्धकार है। यह विचारणीय है कि शील क्या है ? ब्रह्मचर्य क्या है ? इनसे शारीरिक और मानसिक-स्वस्थता का क्या सम्बन्ध है ? ___ब्रह्मचर्य शब्द 'ब्रह्म' और 'चर्य' इन दो शब्दों के संयोग से बना है। ब्रह्म का अर्थ है - आत्मा की शुद्ध दशा; चर्य का अर्थ है – आचरण । आत्मा के शुद्ध स्वभाव को प्राप्त करने वाला आचरण ब्रह्मचर्य है। ब्रह्मचर्य की साधना परमात्मस्वरुप की साधना है। ब्रह्मव्रत की साधना का अर्थ मन-वचन एवं काया से वासनारूपी कर्म-बीज का उन्मूलन करना है।110 यद्यपि ब्रह्मचर्य का महाव्रतों की परिगणना में 110 गांधी वाणी, पृ. 19 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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