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________________ 174 करती है तथा पुरुषवेद का उदय होने पर पुरुष स्त्री की अभिलाषा करता है। तीनों वेद, भाववेद की अपेक्षा से नौ गुणस्थानक तक तथा द्रव्यवेद अर्थात् लिंग की अपेक्षा से चौदह गुणस्थानक तक पाए जाते हैं। तीनों वेदों में जीव का काल - पुरुष वेद - जघन्यतः – अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्टतः - साधिक सागरोपम शत पृथक्त्व स्त्री वेद - जघन्यतः - एक समय उत्कृष्टतः – पृथ्क्त्व कोटि पूर्व अधिक एक सौ दस पल्योपम नपुंसकवेद- जघन्यतः – एक समय उत्कृष्टतः - अनंतकाल अवेदी अवस्था में जीव का काल - उपक्षमश्रेणी आश्रित - जघन्यतः - एक समय उत्कृष्टतः – अन्तर्मुहूर्त क्षपकश्रेणी आश्रित - अनंतकाल . सवेदक जीव, अर्थात् वेद (इच्छा) सहित जीव तीन प्रकार के होते हैं? - 1. अनादि-अपर्यवसित 2. अनादि-सपर्यवसित और 3. सादि-सपर्यवसित जिन जीवों में अनादिकाल से संवेदकता चली आ रही है एवं कभी समाप्त नहीं होती, वे अनादि अपर्यवसित संवेदक कहे जाते हैं। जिन जीवों की संवेदकता पूर्णतः समाप्त हो जाती है, उन्हें अनादि-सपर्यवसित-संवेदक माना जाएगा। जो एक 9 एगे वि य णं जीवे एगेण समएणं एगं वेयं वेएइ तं जहा - (1) इत्थिवेयं वा (2) पुरिसवेयं वा - व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र, 2/5/1 2जीवाभिगम प्रतिपत्ति- 9/232 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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